बना के रखी मैंने
मेरी एक कप चाय
मैं उसकी प्रतीक्षा में
वो मेरी प्रतीक्षा में
उड़ती हुई भाप
कप की बंद हो गई हैं।
बेलने को अभी एक रोटी बची है।
रोटी को बना मैंने
सब्जी को चलाया
तो देखा नीचे की सब्जी जल गई हैं।
कप मुझे देख रहा था
मैं कप को देख रही थी।
उँगलियाँ मेरी भी
कप की ओर बढ़ रही थी।
तभी टिफिन पैक हुआ कि नही
आवाज ये आई,
ठिठक गई उँगलियाँ
मैं कप को देख मुस्काई।
निपटा के सारा काम
जब मैं कप तक आई
थक कर मेरी तरह
वो भी ठंडी हो गयी थी।
पसीने की परत की तरह
उस पर भी परत जम चुकी थी।
मुस्काते हुए मैंने अपनी चाय उठाई।
दोनों एक सी ठंडी हैं कह
एक सांस में गटकाई
मैं और मेरी एक कप चाय
कवयित्री:-गरिमा गौतम
पता:-कोटा राजस्थान