स्वर्णिम प्रात की नवल किरण
उतरी भू पर मुस्काई
भान हुआ अरुणोदय का
जागी आँखे अलसाई।
मंद मंद सी वात सुगन्धित
बिखरी जग में सुखदाई
नवल किरण भू पर फैलाई
दिनकर की अरुणाई।
धरती के अंक में बहती
कल कल करती सरिता
तरु की शाखाओं पर कुंजित
खग कुल की मृदु ध्वनियाँ।
छोड़ निशा के निमिष काल को
दिव्य प्रभा का गान करो
दृढ़ संकल्पित हो लक्ष्य चुनों
जीवन पथ का आह्वान करो।
त्यागो तंद्रा भोर हुई अब
खोलो आँखे अलसाई
स्वर्णिम प्रात की नवल किरण
उतरी भू पर मुस्काई।
नीरजा बसंती,वरिष्ठ कवयित्री
गोरखपुर-उत्तर प्रदेश