कचरा कुंडी में हजारों की संख्या में मास्क पड़े हुए हैं। सबकी हालत नोटबंदी से भी बदतर है। नोटबंदी में कम से कम पुराने नोटों को निश्चित समय के भीतर बैंक में लौटाने पर उसके बदले नए नोट तो मिल जाते हैं। किंतु इन्हें लेने वाला कौन है? राजनीति में ‘उतरन’ का इस्तेमाल जितना श्रेष्ठ माना जाता है, भौतिक वस्तुओं का इस्तेमाल उतना ही निकृष्ट माना जाता है। हजारों की संख्या में पड़े मास्को की पीड़ा अंतहीन है। वे भी जनता की तरह चुपचाप सहने के लिए विवश हैं। उन्हीं में से तीन मास्क ऐसे हैं जो नेता बनने के सभी गुण रखते हैं। नेता बनने के लिए मुद्दों की तलाश से ज्यादा जिद्दी होना जरूरी होता है। मौन और मंदस्वर की भेंट चढ़ने वाले तर्कसंगत मुद्दे जिद्दी नेता की कमी के चलते प्राण त्याग देते हैं। जबकि तर्कहीन और हास्यास्पद से लगने वाले मुद्दे उक्त नेताओं के चलते बड़ी सुर्खियां बटोर लेते हैं। यही कारण है कि रोटी, कपड़ा और मकान जैसे मुद्दे जमीन के भीतर दफना दिए जाते हैं और किसी रईसी औलाद की जमानत देश के लिए जीने-मरने का सवाल बन जाता है।
कचरा कुंडी में मास्को की एक चर्चा चल रही है। नइका मास्क, टुटनका मास्क और ललका मास्क अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं। बाकी मास्क उनकी चर्चा बड़ी ध्यान से सुन रहे हैं।
नइका मास्कः काहो टुटनका भैया! का हाल चाल बा? एहर-केहर आइगएला?
टुटनका मास्कः हाल-चाल का बताई बच्ची! देखत हौआ न एहर पड़ल हई भूइयाँ लोटे खातिर। ससुरा पता न चलत है कि हमार जनमवा काहे बाटि भयल?
नइका मास्कः ऐसन मुंहवा लटकैले से का होई। तनी ठीक-ठीक बतावा।
टुटनका मास्कः का बताई बच्ची! जे ससुरा हमके दुकनिया से खरीदले रहल, ऊ हमके जिनगी भर कबो मुंहवा-नकुरा पर न रखले। होकरे नकुरा पर त चौबीसन घंटा गुस्सा बैठल रहत और मुंहवा त गुटखा-खैनी, पान-तंबाकू का कंपनी लागत बाटी। कबो हमके कदर न करलै ऊ ससुरा! जब देखा तब हमके ठुड्डिया पर चढ़ैले रहल। परिणाम ई भयल कि हमार एकठो टंगनी टूट गयल। एही खातिर ससुरा हमके एहर फेंक गयल है। कौनो कदर नहीं हमार।
नइका मास्कः एत भैया! रोवा मत! सबकर ऊव हालत बा। कम से कम तोहके ठुड्डिया पर बैठे क सुख मिलल बाटी। हमरे जोग में ऊहो नाही। अब देखा न ससुरा जे हमके खरीदले ऊकर बिटिया ऐह खातिर फेंक देहले कि हमरा पर मकड़ापुरुष (स्पाइडरमैन) का डिजाइन न रहल।
(तभी अचानक दोनों की बात सुन लाल रंग का मास्क सुबक-सुबकर रोने लगता है।)
नइका मास्कः का भएल तू काहे रोवत हउआ?
ललका मास्कः ऊ ससुरा के हमार रंग अच्छा न लगल। दे देहले उठाइके अपने संगी-साथिन के। ऊ हमके एहर फेंक देह न। हमके अबही तक ई समझ में न आवत ह कि ससुरा सबकर चाल-ढाल कौनो ठीक बाटी जे हमरे में दोस निकालत ह।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657