उमरी बेगमगंज / गोंडा। गोण्डा जनपद मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर उमरी बेगमगंज के पास मुकुन्दपुर गांव में स्थित आदिशक्ति मां बाराही का मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य का द्योतक है हजारों वर्ष पुराने वटवृक्ष के नीचे बने इस मंदिर में पहुंचकर असीम शांति का अनुभव प्राप्त होता है मान्यता है कि यहां दर्शन करने वाले की सभी मुरादें पूरी होती है और नवरात्र मेले में "अखियां " प्रतीकात्मक आंख चढ़ाने का विशेष प्रचलन है लोगों ने बताया कि इससे आंखों की रोशनी लौट आती है यहां दर्शन कर भक्तजन मां वाराही की कृपा पाते हैं।वाराह पुराण के मतानुसार जब हिरण्य कश्यप के भ्राता हिरण्याक्ष पृथ्वी को चुरा ले गया था तो उसका वध करने के लिए भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लिया और हिरण्याक्ष के वध के समय आदिशक्ति की उपासना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां वाराही रूपी लक्ष्मी देवी अवतरित हुई। इस मन्दिर में एक सुरंग स्थित है सुरंग के मुहाने पर स्थित अरघे में दिन-रात दीपक जलता रहता है मंदिर के चारों ओर फैली वट वृक्ष की शाखाएं मंदिर के पुरातन काल से ही स्थित होने का प्रमाण दे रही हैं सुरंग के गर्भगृह में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है। इस सुरंग की गहराई आज तक नापी नहीं जा सकी। मां वाराही का दर्शन पूजन करने वाले को आयु और यश की प्राप्ति होती है एवं मांगी गई मन्नत निश्चित ही पूरी होती है लोक मान्यताओं के अनुसार यहां प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने से आंखों की विभिन्न जटिल बीमारियों का निवारण होता है।मान्यता है कि परिसर में मौजूद 1800 साल पुराने वटवृक्ष से निकलने वाले दूध को आंखों में डालने से नेत्रहीनों को रोशनी मिल जाती है।
आदि शक्ति मां बाराही के दर्शन मात्र से मिलती है आंखों की ज्योति
युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क