मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ है।मैंने अपने दादा परदादा को नहीं देखा लेकिन उनके बारे में मैंने अक्सर ही सुना कि वे कितने ज्यादा धार्मिक थे और धर्म को बहुत ज्यादा महत्व देते थे।यहां तक कि उन्होंने धन को महत्व नहीं दिया। पुरानी पुस्तकें मैंने बहुत सारी ऐसी देखीं जिनको वे पढ़ा करते थे।जिस जमाने में जहां वे रहते थे। वहां पर कोई फोटोग्राफर नहीं था। दुकानें बहुत कम थीं।ऐसे समय में अनेक पुस्तकें उनके पास बहुत दूर से आया करती थीं।वे उनको पढ़ा करते थे। जिनमें बहुत ज्ञान की बातें होती थीं।उनमें यह नहीं सिखाया जाता कि तुम कट्टर हिंदू बनो।बल्कि एक जीवन के आदर्श उनमें बताये गए हैं।
इसी तरह कल्याण आदि कई प्रकार की पुस्तकें मैंने देखीं।जिनको मैंने पूरी तरह से पढ़ा तो नहीं लेकिन कुछ उसमें कहानियां और शिक्षाएं मैंने पढ़ी।वास्तव में बहुत ही अच्छी पुस्तकें होती हैं। और वे जीवन क़े दर्शन हमें सिखाती हैं। जीवन में कैसा आचरण करना चाहिए।पुस्तकें सिखाती कि यदि गलत व्यवहार किया जाता है तो किस प्रकार से व्यक्ति को झेलना पड़ता है।
घर में कई बड़े सदस्यों को मैंने यही देखा कि वे ईश्वर की पूजा करने,भजन करने पर बहुत ध्यान देते थे।यहां तक कि मेरे एक ताऊ जी की मृत्यु भजन करते समय ही हुई। उस वक्त भजन करते-करते ही सबको लगा कि शायद वह सो गए होंगे। वह रोज ही भजन करते थे।वह मृत बैठे हुए मिले। हाथ जुड़े हुए। कुछ देर पहले भजन गा रहे थे।
धर्म परिवर्तन की भले ही सभी नागरिकों को आजादी है कि स्वेच्छा से अगर वह धर्म परिवर्तन करना चाहे तो कर सकता है।
यदि किसी भी व्यक्ति की ऐसी परिस्थितियां होती हैँ कि उसे धर्म परिवर्तन करना पड़े उसके बारे में तो अधिक नहीं कहा जा सकता।
मेरी नजर में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं होती। व्यक्ति सामना कर सकता है।
व्यक्ति का जन्म परिवार में होता है। वह जिस धर्म का है।उस पर उसकी ही छाप पड़ती है। उस धर्म में रहते हुए यदि वह पूर्ण रुप से उस धर्म का पालन नहीं कर पाया है तो क्या वह अन्य धर्म में जाकर उसका पालन कर सकेगा।ऐसा कभी नहीं हो सकता।व्यक्ति को धर्म परिवर्तन की आवश्यकता क्यों पड़ सकती है? बिल्कुल नहीं पड़ सकती।यदि वह अपने धर्म को आगे बढ़ाना चाहता है और धर्म की रक्षा करना चाहता है। क्योंकि धर्म भी तो व्यक्ति की रक्षा करता है।धर्म चाहे कोई सा भी क्यों न हो।वही तो इंसान बनाता है।
धर्म परिवर्तन करने से जो ऋषि मुनि जिनकी संतान हैँ और आगे पीढ़ी भी जो आ रही है। शायद उनकी आत्मा भी इसका स्वीकार नहीं करती। कुल के देवता भी धर्म परिवर्तन स्वीकार नहीं करते।धर्म परिवर्तन करने से व्यक्ति को अक्सर सामाजिक व अन्य कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।मैं सभी धर्मों का सम्मान करती हूं।कभी किसी भी धर्म का अपमान नहीं करती।
मेरे विचार में धर्म परिवर्तन ठीक नहीं होता। धर्म परिवर्तन से अपने मन की भावनाएं भी कभी संतुष्ट नहीं होतीं।कुछ साल पहले ईसाई धर्म से संबंधित मेरे पास लखनऊ से पुस्तकें आती थीं इंटरनेशन आई सी आई संस्था से। मैं उनको पढ़ती थी। वे पेपर भी भेजते थे।जिसमें कि प्रश्नों के उत्तर देने होते थे।उसके बाद प्रमाण पत्र भी दिया करते थे। इसका विज्ञापन एक बार अख़बार में देखा था। कुछ विशेष नहीं लगा सिर्फ प्रचार ही लगा। यह लगभग दो वर्ष चला। फिर उत्तर देना बंद कर दिया।
अन्य धर्म में दी गई शिक्षाओं को हम पढ़ सकते हैं। ज्ञान प्राप्त कर सकते हैँ।वैसे कोई भी धर्म व्यक्ति को गलत रास्ते पर नहीं ले जाता।सभी धर्मों में अच्छी बातें बताई गई हैं।सभी धर्मों की अच्छाइयों को पढ़ना चाहिए।
हिंदू धर्म में मेरा जन्म हुआ है लेकिन हिंदू धर्म से संबंधित जितने भी पुराण हैं। वेद हैं।रामायण है। और गीता है इसको अभी मैंने पूर्ण रूप से अपने जीवन में नहीं उतारा है।अभी पूर्ण रुप से मैं उस रास्ते पर नहीं चल पाई हूं।तो क्या मैं दूसरे धर्म को अपनाकर उस धर्म का पूर्ण रुप से पालन कर सकती हूं।बिल्कुल भी नहीं।
एक विचार बार-बार आता है कि यदि कोई भी व्यक्ति धर्म परिवर्तन कर लेता है तो क्या वह अमर हो जाता है।फिर भी वह मृत्यु के निकट ही होता है।क्योंकि जिस व्यक्ति का जन्म हुआ है उसे मरना तो अवश्य ही है।मृत्यु तो उसको अवश्य आएगी। लेकिन मैं इस बात में पूर्ण रुप से विश्वास रखती हूं कि ईश्वर एक है। और ऐसा नहीं होता तो सूरज चांद तारे ये सब अलग-अलग अवश्य होते। क्यों नहीं हैँ?
मैं कभी किसी को सलाह नहीं देती कि कोई भी व्यक्ति धर्म का परिवर्तन करे। और न ही मैं खुद इस बारे में कभी सोचती हूं।जिस धर्म में व्यक्ति का जन्म होता है।वह धर्म उसकी आत्मा से जुड़ा होता है।
ऐसा नहीं है कि धर्म के प्रचार प्रसार के लिए मैं कोई संस्थाएं चला रही हूं या मैं प्रचार-प्रसार करने में लगी हुई हूं।ऐसा मैं कुछ भी नहीं कर रही हूं।किसी भी धर्म में जन्म लेने पर मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं उस धर्म की रक्षा करूं।और अन्य किसी धर्म को चोट न पहुंचाऊँ।धर्म कोई सा भी हो उसमें रोटी खानी है।रोटी खाकर जीना है। सोने के बिस्कुट तो किसी में भी नहीं खाने।यह मेरा सामाजिक अध्ययन भी है कि जितने लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है अक्सर उनको कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न हुईं हैं।
अच्छे विचारों को कहीं से भी ग्रहण कर सकते हैं। लेकिन अपने धर्म का त्याग कर दिया जाए यह अनुचित है। एक पाप है।ईश्वर कभी भी माफ नहीं करता।
मूर्ति पूजा मैंने अपने घर में शुरू से होते हुए देखी।मैं मूर्ति पूजा नहीं छोड़ सकती।क्योंकि जो व्यक्ति शुरू से देखता है।उसको अपनाता भी है।उसकी भावनाएं भी उसी प्रकार की हो जाती हैँ।मैं जानती हूँ कि ईश्वर निराकार है।ईश्वर अनेक रूपों में पृथ्वी पर अवतरित हुआ है।पृथ्वी पर आकर लोगों का कल्याण भी किया है।जैसे श्री रामचंद्र जी पृथ्वी पर आए और उन्होंने लोगों का कल्याण किया।श्री कृष्ण भगवान भी पृथ्वी पर आए और उन्होंने लोगों का कल्याण किया।
देवताओं के साथ-साथ महापुरुष भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं।वे भी कल्याण करने के लिए ही जन्म लेते हैं।उनमें भी एक महान आत्मा ही होती है।उन्हें अच्छे पथ पर जाकर लोगों का कल्याण करने के लिए प्रेरित करती है।यदि मैं बड़े-बड़े यज्ञओं का आयोजन नहीं कर सकती।बड़ी-बड़ी धार्मिक कथाओं का आयोजन नहीं कर सकती। मैंआसन लगातार भगवान का भजन घंटों नहीं कर सकती तो इसका मतलब यह नहीं है कि मेरी भावनाएं उससे उलट हो सकती हैं।
मेरे माता-पिता की मृत्यु हिन्दू धर्म में हुईं।
मेरी माता ने मृत्यु से पहले विष्णु भगवान का नाम लिया। विष्णु देवता मेरे कुल देवता हैँ।
मेरे मन में धर्म परिवर्तन का अगर आया तो मेरी माँ मुझे धिक्कारेगी। मुझे कभी माफ नहीं कर सकती।मैं कभी यह नहीं बखान करती कि मैं कट्टर हिंदू हूं या हिंदू हिंदू नहीं चिल्लाती।लेकिन फिर भी मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मेरी आत्मा हिंदू धर्म से जुड़ी हुई हैं। मैं हिन्दू धर्म को नहीं छोड़ सकती।
आध्यात्मिक गुरुओं के अच्छे विचारों को सुनती हूँ। उन पर विचार करती हूँ। पर ईश्वर की तरह उनको नहीं पूजती। जो देवी-देवताओं का विरोध कर खुद को चमत्कारी और शक्तिशाली बताता है। ऐसे आध्यात्मिक गुरुओं से बहुत दूर हूँ।
गौ सेवा में धार्मिक विश्वास रखती हूँ
सभी धर्मों में लोग गरीब और अमीर होते हैँ। शिक्षित और अशिक्षित होते हैँ। अच्छे और बुरे होते हैँ।
सभी धर्मो का सम्मान करना हमारा कर्तव्य है।
अपने धर्म की रक्षा करना हमारा धर्म है। कर्म ही पूजा है। मानवता परम धर्म है।
पूनम पाठक बदायूँ
उत्तर प्रदेश