बिलासा छंद महालय वेबसाइट का हुआ भव्य उद्घाटन

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

मुरलीडीह ( जांजगीर चंपा ) छत्तीसगढ़ - इस युग को छंद युग बनाने का स्वप्न लेकर बिलासा छंद महालय का हुआ  निर्माण , जिसके वेबसाइट का हुआ भव्य उद्धाटन दिनांक 24 नवंबर संध्या 7 बजे किया गया जूम एप्प के माध्यम से भव्य लोकार्पण। जिसकी शुरुआत में दीप प्रज्वलन छंद महालय के संस्थापक आदरणीय छंदाचार्य रामनाथ साहू "ननकी" जी के कर कमलों से हुआ । सुश्री ज्ञानेश्वरी साहू के शंखनाद एवं गणपति वंदना बक्सर की गायिका कल्पना निर्मल के सुमधुर आवाज से माहोल पावन हो गया l मीठी आवाज की धनी माधुरी डड़सेना मुदिता जी तथा संगीत में अपनी पहचान रखने वाले महेश साहू जी के आलाप और तान के साथ सरस्वती वंदना का गायन हुआ। माहौल छंद और राग के भाव से भावित रहा ।  संचालिका  कुसुम लता कुसुम जी ने अपने शब्दों के जादू से कार्यक्रम को शुरुआत से अंत तक बांधे रखा । वेबसाइट का उद्घाटन महेश साहू जी ने लाइव जूम पर दिखाया जिसे देख तालियों की आवाज से मंच गूँज गया । 

अपने भावों को व्यक्त करते हुए महेश साहू जी,इस छंद महालय के तकनिकी सहायक ने कहा- मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि इस पावन यज्ञ में मुझे भी सेवा का अवसर मिला ।

महालय संस्थापक जी ने अपने उद्बोधन में कहा- हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर वैदिक युगीन परंपरा रही  है । समस्त वेद ,पुराण ,आर्ष साहित्य छंदों की परंपरा के वाहक हैं l इनकी सुगंध आज तक हर हृदय को नयी प्रेरणा, आध्यात्मिक शक्ति का विकास करते हुए दिखाई देती है । बदलते समय के साथ ही आज सृजन पक्ष लगभग इनसे दूर जाता हुआ दिखाई देता है l ऐसे में इन विधानों को जीवंत रखकर सृजनात्मक अभिवृद्धि करना अत्यंत आवश्यक है । इसी कार्य को केन्द्र में रखकर कुछ उत्साहित छंद साधको को लेकर बिलासा छंद महालय की स्थापना की गई है । बिलासा साहित्य संगीत  धारा के सृजनकारों को छंदमय वातावरण देकर इनकी साहित्यिक प्रतिभा को नया आयाम देने की कोशिश में इस पटल की स्थापना ने सबके काव्य सृजन को प्रभावित किया । आज छंद विधा संपन्न सृजनकारों की एक लम्बी सूची है ।

बिलासा छंद महालय के सुदृढ नींव  स्वर्णिम सदस्यों में माधुरी डड़सेना " मुदिता " ,सुकमोती चौहान " रुचि " ,  आशा आजाद " कृति " , इंद्राणी साहू " साँची " , कन्हैया साहू " अमित "जी  उल्लेखनीय हैं । इन्हें पंचरत्न की संज्ञा दी गयी ।

समयानुकूल नवांकुरों को छंद की बुनियादी शिक्षा के लिए बिलासा छंद महालय पूर्व की स्थापना भी की गई है । यहाँ पटल गुरु के रुप में व्यंजना आनंद " मिथ्या ", मधु शंखधर " स्वतंत्र ", सपना "सुहासिनी", राजकुमार छापड़िया, आशा मेहर , ओमकार साहू " मृदुल " निरंतर अपनी सक्रियता से सबको प्रशिक्षित कर रहे हैं । निश्चित ही हम नित्य सफलता के नये आयाम गढ़ रहे हैं । 

 बिलासा छंद महालय पर देश के सभी प्रदेशों के काव्यकार ज्ञानार्जन कर रहे हैं। हमारा सपना एक सुखद नवीन छंद युग निर्माण करना है। हम संकल्पित हैं जब तक सभी छंदो पर लिखने न लगे तब तक यह कारवाँ चलता ही रहेगा । तत्पश्चात पटल के सभी गुरु ने भी अपने भावों को व्यक्त किया जिसमें सर्वप्रथम इन्द्राणी साहू साँची जी ने कहा - छंद महालय परम पावन मंच से जुड़ना हृदय को आह्लादित करने वाला अनुभव है।

यह पटल निश्चित ही एक परम पावन उद्देश्य को लेकर आदरणीय गुरुदेव रामनाथ साहू ननकी भैया जी द्वारा स्थापित किया गया है ।

यहाँ निःस्वार्थ भाव से सर्वहिताय की भावना से सभी छंद साधकों को समान रूप से छंद साधना का सुअवसर प्रदान किया जाता है जहाँ पटल गुरुओं की पारखी और निर्लिप्त नजरों से परिष्कृत होकर छंद निखर कर सामने आता है ।

परम पावन मंच का हार्दिक आभार जहाँ मुझ जैसे अकिंचन को पटल गुरु के रूप में छंद साधकों के सहयोग करने का अवसर प्राप्त हुआ ।

वहीं पटल गुरु माधुरी डड़सेना मुदिता जी ने कहा  - "आओ सृजन करें , नव पथ गमन करें"  याह स्लोगन लेकर बिलासा छन्द महालय की स्थापना श्रद्धेय गुरुजी आदरणीय श्री रामनाथ साहू "ननकी" जी के द्वारा किया गया  और पटल गुरुओं को साथ लेकर यह कार्य अबाध गति से आगे बढ़ रहा है । ये मेरा परम् सौभाग्य रहा कि बिलासा छंद महालय में पटल गुरु के रूप में पौराणिक छंदों को सीखने सिखाने का सुअवसर मुझे मिला । यहॉं छन्द साधकों के लिए नित्य विभिन्न वार्णिक व मात्रिक छन्दों का अभ्यास कराकर त्वरित परिमार्जित भी किया जाता है जिससे सीखने वालो में दुगुना उत्साह बढ़ जाता है । इनके उद्देश्य को देखते हुए नित्य छन्द साधकों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है । छंद युग लाने के यह भागीरथी प्रयास निश्चित ही प्रेरणाप्रद है ।

आज जो भी हम साहित्य सेवा कर रहें हैं वह बिलासा छंद महालय की अनुपम देन है। 

तीसरे नंबर पर पटल गुरु कन्हैया साहू "अमित" जी ने अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा - विगत कुछ वर्षों से छंदमय सृजन में आई रिक्तता की भरपाई छंदमहालय के छंद अभ्यासियों द्वारा उत्कृष्टता के साथ किया जा रहा है। प्रतिदिन पटल पर छांदस रचनाओं का अभ्यास, विधान, शिल्प व भावपक्ष की सूक्ष्मताओं को छंद गुरुओं के द्वारा सिखाया जाता है। अल्प समय में ही छंदमहालय के छंद सृजनकार अन्यों की रचनाओं को परिमार्जित करना सीख गये हैं। छंदमहालय के संस्थापक आदरणीय ननकी भैयाजी के परिश्रम की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही है। पूरे भारत से हिंदीभाषी छंद सृजन में अभ्यास करने वाले इस पटल से जुड़े हुए हैं और नित्य प्रतिदिन प्रदत्त छंद व विषय पर अपनी श्रेष्ठ सृजन करते हैं। यह क्रम निर्बाध गति से जारी है जो हिंदी साहित्य के छंदकोष को परिपूर्ण करता चला जा रहा है। मुझे छंदमहालय से पटल गुरु के रूप में जुड़कर सारस्वत साधना करने का सौभाग्य मिला। 

छंद महालय पूर्व की पटल गुरु व्यंजना आनंद "मिथ्या "जी  ने  अपने भावों को व्यक्त करते वक्त खुद को रोक नहीं पाई और रो पड़ी उन्होंने कहा - बिलासा छंद महालय यह नाम ही खुद में परिपूर्णता का परिचायक है ।           

जो साहित्यकार इस महालय से जुड़े उनकी साहित्य साधना के पश्चात  उनके जीवन में बहुत बड़ा आमूल परिवर्तन आया । वह परिवर्तन दिखा उनकी लेखनी में तथा लेखनी के कारण समाज में बनी पहचान में ।  कहाँ भी जाता है ज्ञान दीपिका जब जल उठती है तब  वही रौशनी चौतरफा उजाला फैला देती है । मुझे गर्व है की इस महालय से मैं जुड़ी  तथा ईश्वर की असीम अनुकम्पा से उस महालय में आज मुझे सेवा करने का शुभ अवसर पटलगुरु के रूप में प्राप्त हुआ ।

मैं पहले अतुकांत रचनाएँ  ही सिर्फ लिखा करती थी  । आज छंदों के राग ताल के साथ जब लेखनी चलाती हूँ तो ऐसा लगता है कलम को उड़ान मिल गयी है , सोच को पंख लग गये , हर कार्य में छंद ही मस्तिष्क पर छाते है अर्थात् जीवन ही छंदमय व्यवस्थित हो चुका है यह सिर्फ  और सिर्फ हमारे आदरणीय छंदाचार्य गुरुवर रामनाथ साहू ननकी जी की कृपा से  ।

हाथ लगा नक्काश के, नाहक था पाषाण।

ननकी छंदाचार्य हैं, छंद महालय त्राण।।

उपरोक्त पंक्ति *काव्यपथ मृदुल की साहित्यिक यात्रा का सार समेटे हुए है, या दूसरे शब्दों में कहूँ तो एक चिकित्सक सह रेडियोटेनोलाजिस्ट को वैज्ञानिक युग के साथ छंद ज्ञान प्रदान कर साहित्य जगत में नवरूप दिया है। जिसका साहित्यिक नाम मृदुल भी आपके द्वारा नामांकित है।।

डाॅ .ओमकार साहू मृदुल जी ने कहा - सैकड़ों छंदसाधको को छंद महालय की नियमित कक्षाएँ, पटल छंदगुरुओं का मार्गदर्शन और पाक्षिक मूल्यांकन जैसे कसौटियों से गुजारकर साधारण से सुविज्ञ बनाने की निः स्वार्थ समर्पण भावना नमनीय और वंदनीय है। किसी प्रशिक्षु को पारंगत कर छंदगुरु के पद पर आसीन करना, निश्चित ही महालय के कर्मठ गुरुओं के सफलता का द्योतक है।अंत में यही कहना चाहूँगा कि हमारे जैसे कितने छंदसाधक मार्गदर्शन के अभाव में अपनी कौशलता के अनुरूप ऊतुंग प्राप्त नहीं कर पाएँ हो, उन सभी के लिए छंद महालय मील का पत्थर साबित होगा सभी  जिज्ञासु के लिए  महालय का निर्माण हुआ है । 

फिर मंच पर पटल गुरु मधुशंखधर जी ने अपने भावों के शब्द को बिखेरा - छंद महालय से जुड़ना मेरे जीवन में मुझ पर छंद देव गणपति और मांँ शारदे की कृपा जैसा है परम आदरणीय आचार्य रामनाथ साहू  सर से मिली जिन्होंने मुझे छंद की बारीकियों के साथ ही निरंतर लेखन की प्रेरणा मिली है। *सतत् लिखो श्रेष्ठ लिखो*  विचारधारा का अनुसरण कर रही हूंँ ।

मैं आज बिलासा छंद महालय पर पटल गुरु के पद पर हूँ यह आदरणीय ननकी सर के आशीष का प्रतिफल है आपका हम पर विश्वास ही मुझे इस पद पर लाया है पटल गुरु के रूप में जिज्ञासु साधकों को छंद मूल नियमों का ज्ञान देना एक सुखद अनुभूति प्रदान करने के साथ ही  मेरे ज्ञान में भी वृद्धि कराता है ।

यह पद मेरे जीवन की अभूतपूर्व उपलब्धि है ।

वहीं पटल गुरु आशा मेहर किरण जी ने कहा  - छंद महालय से जुड़ना मेरे लिए सौभाग्य की बात है l

आदरणीय गुरुदेव के द्वारा छंद विधान की बारिकियों को सीखना उसे आत्मसात करना मेरे लिए एक सुखद और संतुष्टि दायक अनुभूति है l

बरसों से लेखन कार्य कर रही हूँ छंद मुक्त रचनाओं से मेरी पहचान बनीं बहुत से सम्मान मिले......किन्तु ननकी जी के सान्निध्य मे आकर छंद सीखने के बाद अब छंद मुक्त रचना नही लिख पाती हूँ... मन के भाव छंद में उपजते है पूरा लेखन छंद मय हो गया है.... कोरोना काल मे लाॅक डाउन के दौरान पटल पर पूरी गहनता के साथ महालय पटल पर ननकी जी के साथ सभी पटल गुरुवों की कृपा से छंद सीख रही हूँ जो मेरे जीवन की, लेखन की दिशा को ही बदल दिया.... साथ ही छंद गायन मे भी मुझे सफलता मिली l आदरणीय गुरुदेव का  यह कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी .... जिन्होंने हजारों साधकों को छंद विधान सिखाया और सिखा रहे हैं.. विशुद्ध भावना, सहज सरल स्वभाव और सिखानें की ललक हम सीखने वालों से ज्यादा है नमन गुरु देव ।

 उसके बाद पटल गुरु सपना जी ने कहा - छन्द महालय से जुड़ना अपने आप में सौभाग्य का विषय है, महालय में विभिन्न प्रकार , जाति, धर्म इत्यादि विभिन्नताओं के व्यक्ति प्रवेश करते हैं, और गुरुवर आदरणीय राम नाथ साहू "ननकी" जी के व उनके गुरूमण्डल के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप सिर्फ आदर्श कवि / कवियत्री बनकर ही निकलते हैं। छन्द महालय अपने आप में अत्यन्त महान, पूज्यनीय व आदर्शों का देवालय है। जहाँ पर निःस्वार्थ भाव से सभी छन्द साधकों के ज्ञानवर्धन के साथ उनकी समस्याओं, प्रश्नों व तर्कों का आधुनिक व पुरातन के सम्मिश्रण के साथ अत्यंत वैज्ञानिक समाधान प्रदान किया जाता है। मेरा एक छन्द साधक की तरह जुड़ना ततपश्चात पटल गुरु के रूप में स्थापित होना मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से एक बहुमूल्य उपहार है। आदरणीय गुरुवर का अथाह व अद्भुत ज्ञान निःसन्देह वन्दनीय है। जब तक श्वांस है तब तक मेरे द्वारा महालय जुड़ा रहना वर्तमान में मेरी निजी आवश्यकता बन चुका है। जिस प्रकार माँ गंगे अपने पवित्र पावन जल को सतत रूप से प्रवाहित करती रहतीं हैं उसी प्रकार महालय से प्रतिदिन कुछ नया सीखने व प्राप्त होने की स्थिति  सदैव बनी रहती है। फिर मंच पर छंद गुरु राजकुमार छापड़िया जी ने अपने भावों की वर्षा करते हुए कहते हैं -

बिलासा छंद महालय से जुड़े हुए करीब चार महीने हो गए। जब मुझे आदरणीया व्यंजना आनंद दीदी जी ने कहा कि यदि छंद सीखना चाहते हो तो बिलासा छंद महालय से जुड़ जाओ । सीखने की ललक भी थी और समय की कोई कमी नहीं थी। हम विभिन्न पटलों पर गीत और कविता लिखते थे और दूसरों के छंदों को सराहा करते थे । शाम को एक घंटे का अभ्यास सत्र और वह भी बिल्कुल मुफ्त। इसलिए हम तुरंत तैयार हो गए। दस मिनट के अभिवादन काल के बाद जब अभ्यास सत्र शुरू हुआ तब स्वयं आदरणीय गुरुदेव ने छंद के विधान को लिखित रूप से प्रेषित कर समझाया तथा उदाहरण प्रस्तुत किया। वास्तव में कुछ पटलों पर हमने सवैया लिखा तो था परन्तु इसकी विस्तृत जानकारी हमें गुरुदेव से मिली। दोहा लिखते समय जगण (121) के बारे में बताया गया था किंतु गणों की सम्पूर्ण जानकारी बिलासा छंद महालय में मिली। गुरुदेव ने विभिन्न छंदों की विस्तृत जानकारी दी । तुकांत के विषय में सूक्ष्म ज्ञान दिया।

शिक्षक दिवस के अवसर पर मुझे यहाँ पटल गुरु की उपाधि प्रदान की गई । वास्तव में आदरणीय गुरुदेव ने हमें जमीन से उठाकर आसमान पर बैठा दिया। कुछ ही दिनों में हमें पता चल गया था कि गुरुदेव ने हमारी जिम्मेदारी बढ़ा दी । हर रचना को ध्यान से पढ़ना, मात्राओं को गिनना, विधान के साथ-साथ तुकान्त दोष पर प्रतिक्रिया देना। फल तो निश्चित ही मिलना था। साधकों की रचनाओं में निखार आने लगा। हम सभी पटल गुरुओं ने भी पूरी कोशिश की और आज हम सभी संतुष्ट हैं । 

फिर मंच पर मंजरी निधि जी जो वेबसाइट की पटल संचालिका के रूप में नियुक्त की गयीं है उन्होंने कहा - मैंने तो कभी कल्पना ही नहीं की थी कि कभी मैं छंद लिख पाऊँगी l परन्तु प्रभू कृपा ऐसी हुई कि मुझे गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त हुआ साथ ही सभी पटल गुरुओं का आशीर्वाद भी l मैं लिख सकती हूँ तो कोई भी छंद लिख सकता है बस जरूरत है तो सतत अभ्यास की l

सब पटल गुरुवों के बोलने पर छंदाचार्य गुरुवर ननकी जी भाव विभोर हो अपने आशीष वचन सबको दिए ।

अंत में व्यंजना आनंद मिथ्या जी ने  स्वरचित सार छंद पर छंद महालय का शीर्षक गीत सुमधुर आवाज में गाय । बोल इस प्रकार थे -- 

ज्योति जली हैं छंद ज्ञान की , जिसको हम सब पाते  ।

दिव्य बिलासा छंदमहालय , साधक पढ़ने आते ।।

जाग लेखनी जाग , जाग लेखनी जाग:::::::::::::::::