एक थे माखन भैया। काश वे अपने नाम के मुताबिक होते दो-चार मक्खियाँ भिनभनाकर चली जातीं। दुर्भाग्य से नाम और दर्शन में कोई मेल नहीं है। उनमें खरीदने और खाने की क्षमता ठीक उतनी ही है जितनी कि भारतीय अर्थव्यवस्था की। हाँ इतना है कि वे खरीदने और खाने के बीच झूला झूल अवश्य नजर आते हैं। वे कई वर्षों से देश की गौरव गाथा गा-गाकर अपना पेट भर रहे हैं। किंतु पिछले कुछ दिनों से उनका पेट भी दाल-भात मांगने लगा है। हो न हो उनके पेट को विपक्ष की नजर लग गयी है। बहुत दिनों तक उन्होंने अपने पेट को बेवकूफ बनाया। अब वह भी समझदार हो गया है। एक ओर बढ़ती कीमतों से जहाँ उनकी आग बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर जीने की आस ठंडी पड़ती जा रही है। जब तक मुँह से बात, गले से गीत निकले, तब तक पेट में मराड़ मची रहती है। मराड़ तो मराड़ है। मराड़ जाति, धर्म, लिंग, प्रांत, भाषा से स्वतंत्र होती है। यह तो अजर-अमर है और भुक्खड़ पानी का बुलबुला।
माखन भैया की एक अजीब आदत है। जब भी कहीं कोई दावत होती तो बिन बुलाए फट से मक्खी बनकर भिनभिनाने पहुँच जाते। ऐसा करने में उन्हें महारथ हासिल है। पिछले कई वर्षों से इसी तरह ‘बिन बुलाए हम हैं आए’ की तर्ज पर दावतों का लुत्फ उठा रहे हैं। किंतु पिछले दिनों एक अजीब घटना घटी। एक पहुँचे हुए सेठ ने एकदम पहुँची हुई दावत दी। उसमें भी एक से बढ़कर एक पहुँचे हुए लोग पहुँचे। केवल माखन भैया ही एकमात्र ऐसे थे जो पहुँचे हुए तो नहीं पोछे हुए जरूर थे। जिंदगी ने उन्हें इतनी बार पोछा था कि अब वे पोछे से ज्यादा कुछ नहीं लगते।
दावत शुरु हुई। वहाँ ड्रोन, सीसीटीवी, वीडियो शूटिंग का बोलबाला था। सभी अपनी-अपनी क्षमता भर उपहार देते और खा-पीकर रफू चक्कर हो जाते। कार्यक्रम आयोजकों ने दावत समाप्त होने के बाद दावत का खर्च उपहारों की राशि से घटा दी। उन्हें बहुत बड़ा घाटा हुआ था। बाद में उन्होने एक-एक अतिथि को सीसीटीवी, ड्रोन और वीडियो शूटिंग से देखना शुरु किया। इसमें माखन भैया पकड़े गए। उन्होंने बिना किसी उपहार के पंद्रह हजार वाली थाली चट कर दी थ। आयोजकों ने उनका वीडियो क्लिप सभी सोशल मीडिया मंचों पर वायरल कर दिया। उनकी हालत गुमशुदा की तलाश वाली पोस्टर से भी बदतर हो गई थी। बिना पोस्टर के उन्हें भुक्खड़ों का रोस्टर का बना दिया गया। अब वे इतने प्रसिद्ध हो गए हैं कि लोग उन्हें बिना पोस्टर के भी पहचान लेते हैं। उनकी यह उपलब्धि उनकी भुक्खड़ी क्षमता का परिचायक था।
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657