ऐसा तुम हरगिज मत करना

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


मन की गलियों मे माँ ने 

जाने कितने सपने छोड़े 

सबके मन तक पहुंचने को 

मन ही मन में मन को तोड़े 

साँसों में सबकी घुलने को, 

जाने कितनी बार पड़ा मरना 

बस ओढ़नी भर आकाश

अपने हिस्से में ना रखना, 

ऐसा तुम हरगिज ना करना 

उम्र के अंक इकाई में थी ,

तुम जैसी थोड़ा अन्तर भी 

दहाई में ना करना 

घुटने तक झुक कर 

प्रणय निवेदन भ्रम होगा 

बेबाक बातों की आदत से 

खुद को गढ़ना 

बस ओढ़नी भर आकाश 

अपने हिस्से में ना रखना 

ऐसा तुम हरगिज ना करना 

हर अस्वीकृति बातों की 

तह तक जाना 

मति में जो धंस पाए ,

वो उत्तर पाना 

खूबसूरती से, शिद्दत से,

भोलेपन से 

सहज भाव से जो 

समझे समझाया करना 

बस ओढ़नी भर आकाश

अपने हिस्से में ना रखना 

ऐसा तुम हरगिज ना करना 

बस इस घर से उस घर तक ही 

राहें ना दिखलाये कोई 

सफर में तेरी  सड़क है 

ऐसा ना समझाये कोई 

पुल बँध पाए किसी

नई सड़क तक 

कुछ ऐसी कारीगरी करना

बस ओढ़नी भर  आकाश 

अपने हिस्से में ना रखना 

ऐसा तुम हरगिज ना करना


क्षमा शुक्ला,औरंगाबाद-बिहार