कोरोना का कहर शायद सबसे अधिक मनु ने भुगता है। मनु 16 साल का बच्चा है। पिछली बार जब सब मजदूर शहरों से अपने अपने घर पलायन कर रहे थे तभी मनु के मां बाबूजी और एक छोटी बहन और वह स्वयं कारखाना बन्द होने के कारण अपने गांव पैदल ही चल दिये । गांव बहुत दूर था पर मां बाबूजी दोनों को हिम्मत देता बहन से बातें करता हुआ चल रहा था । सब गाँव जाने वालों का का कांरवा साथ चल रहा था । रात होगयी थी बस भूखे प्यासे चले जा रहे थे । मां को बहुत तेज प्यास लग रही थी कैसे भी पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई अभी गांव बहुत दूर था । मनु की मां एक दम चक्कर खा कर गिरी मनु ने बहुत आवाज दी बहुत हिलाया पर मां तो थकान और प्यास के कारण अपने जीवन से हार गयी ।
बाबूजी उसकी बहन बहुत कठिनाइयों से अपने गांव पहुंचे । कोरोना अब थोड़ा थम गया मनु फिर शहर आगया गांव मे बाबूजी ने अपनी एक छोटी दुकान खोल ली पर बहुत सीमित आय थी । मनु ने शहर में एक दुकान पर नौकरी कर ली ।आज वह दुकान जा रहा था देखा एक उसकी मां जैसी महिला लकड़ी आदि का गठ्ठर सर पर रख ला रही थी गर्मी बहुत थी । उसने सर का बोझा नीचे रख दिया और पसीना पोंछते हुये ललचाई दृष्टि से सामने ठंडे शर्बत के ठेले की ओर देख रही थी । वह उसके पास गया बोला मां आप शर्बत पीओगी वह चुप रही । मनु तुरन्त गया और बड़ा गिलास ले आया । उसने उसको दिया वह बहुत खुश हुई और एक दम पी गयी । मनु को लग रहा था शायद मां को तृप्ति होगयी । जब उनसे पूछा तो उसने कहा कि बस्ती में कोरोना फैला पता ना वह कैसे बच गयी उसका पूरा परिवार खत्म होगया । मनु ने उसे उठाया और बोला आप मेरे साथ चलो आप मेरी मां बन कर रहना आज से आप मेरी और मेरी बहन की धर्म मां हैं ।
स्व रचित
डॉ.मधु आंधीवाल
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