एक छोटी सी खूबसूरत बच्ची
अपनी मां के साथ खेलती हुई
मां उसे दुलारती हंसती जाती
आंखों में वह कुछ पढ़ती जाती
बच्ची कभी इधर कभी उधर
खिलौने फेंकती उठाती भागती
कभी खिलौने गले से लगाती
कभी मां की गोद में रख आती
तो कभी वह जमीन पर लेट जाती
खेल खेल कर जब वह ऊब गई
न जाने क्यों जोर जोर से रोने लगी
अचानक पिता की आहट हुई
पिता का चेहरा हंसता हुआ
उन्होंने पायलों को डिब्बे से निकाला
मां पायल देखकर अति खुश हुई
झट से बेटी को वह पहनाने लगी
लेकिन बेटी जोर से रोने लगी
पायल एक तरफ उसने फेंक दीं
कभी मां के कंधे पर वह चढ़ती
तो कभी पिता के कंधे पर चढ़ती
लटककर वह हंसकर झूलने लगी
कोशिश कर वह कंधे पर बैठ गई
बगिया की जैसी हंसने लगी बेटी
देखकर बिटिया को मां बोली
अब मत कहना ऐसा कभी भी
कि बिटिया को पायल पहना दो
पायल से बेटी को बहला दो
जैसे बेटी खुश रहे खुश रहने दो
पूनम पाठक बदायूँ