जिंदगी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


बस चार दिनों की ये

जिन्दगानी है।

आज बचपन कल

जवानी है।

फिर बुढ़ापा और

खत्म कहानी है।

फाड़ देती मैं उन

लम्हों के उन पन्नों को

जिसने मुझे रूलाया था

गर जिंदगी इक किताब

होती .....

जीवन के पन्नों को पलट

कर पीछे चली जाती मैं

अपने टूटे हुए सपनों को

फिर से सजाती मैं।

बीते हुए कल में कुछ

तो मुस्कुराती मैं..।

पर कोई बात नहीं,

चलो हँस कर फिर से

जिया जाए ।

चलो खुलकर फिर से

जिया जाए।

कहीं ये रात सुहानी

फिर से न गुजर जाए

कहीं ये दिन सुहाना 

फिर से न खो जाए।

आने वाले कल की चिंता 

को छोड़कर चलो आज

में जिया जाए।

आओ जीवन की कहानी

को प्यार से लिखा जाए।

कुछ रिश्ते साथ है मगर

कुछ रिश्ते नए बनाया

जाए....।

किसको क्या लेकर जाना 

है इस जहॉं से,

जिन्दगी को मुस्कुराकर

यूं ही जिया जाए ।


                     सोनी पटेल