फैसला

                                               
युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क  

मधु को मायके आए एक महीना हो गया था, पर वह ससुराल जाने का नाम नहीं ले रही थी। 

उसके पति सुशील ने फोन भी किया पर, उसने सुशील से बात नहीं की और फोन भाई को थमा दिया। उसके भाई विवान ने बात करने के बाद अपनी बहन से पूछा, "क्या बात है? दीदी, जीजा जी से बात नहीं की? और तुम ससुराल जाने का नाम भी नहीं ले रही हो, क्या बात है? कुछ तो बताओ! तुम्हारी समस्या का कोई तो हल निकलेगा!"

मधु ने कहा, मैं वहां नहीं जाना चाहती, अगर तुम जानना चाहते हो तो सुनो, "तेरे जीजा जी तो श्रवण कुमार है माता पिता और परिवार के बिना रह नहीं सकते....

मैं मानती हूं कि, अपने मां-बाप से हर कोई प्यार करता है....पर इसका मतलब यह तो नहीं कि, मैं कुछ भी नहीं, मैं भी चाहती हूं कि, वो मेरे साथ बैठ कर बात करें, कुछ समय मुझे भी दे, मेरा भी कोई महत्व हो...पर ऐसा नहीं है..वो  अपना सारा समय अपने मां बाबूजी के साथ बिताते हैं, कुछ समय मुझे भी दें...अगर सेविका ही चाहिए तो खाना बनाने वाली बहुत मिल जाएगी...मेरी वहाँ कोई कदर नहीं सुशील की नजरो में...एक बार मेरी तबीयत खराब हो गई...तो सुशील ने कोई ध्यान नहीं दिया,...मेरा हाल तक नहीं पूछा, कि मैं कैसी हूं..पर उन्हें यही चिंता सता रही थी कि....मां को सारा काम करना पड़ रहा है!"

अब उसके भाई को सारी बात समझ में आई !

उसने कहा, "ओह तो इतने दिन से चुप क्यों थीं, बताया क्यों नहीं! तुम्हारा कहना भी सही है...माता पिता तो सर्वप्रथम है, परिवार तो अपना है, पर पत्नी की भावनाओं का भी ख्याल रखना चाहिए..पर ऐसे भी कुछ लोग होते हैं, ऐसे ही वाहवाही लूटने के चक्कर में एक इंसान की भावनाओं को महत्व नहीं देते,....मैं जीजा जी से बात करके तब उन्हें बता देता हूं!"

उसके भाई विवान ने सुशील को फोन में सारी बात बताई....तो सुशील ने कहा, "मेरे लिए तो माता-पिता से बढ़कर कोई नहीं, कोई बात नहीं, अगर मधु नहीं आना चाहती है ,तो कोई बात नहीं ठीक है मैं उसे जबरदस्ती भी नहीं कहूंगा आने के लिए, जब उसकी इच्छा होगी चली आएगी!"

तब विवान ने कहा, आप बात समझे नहीं जीजा जी, "मैं मानता हूं आपकी बात को, पर हर इंसान का अपना शौक होता है ,एक चाहत होती हैं, दीदी भी आप से जुड़ीं हैं उनकी भावनाओं का कुछ  तो ख्याल करिए...उनकी भावनाएं आप से जुड़ीं हैं...आप समझ रहे हैं, मैं क्या कहना चाहता हूं!"

पर सुशील ने फोन रख दिया। 

मधु ने कहा, "मुझे पता था कि ऐसा ही कुछ करेंगे ...तुम मुझे गलत मत समझना विवान...लेकिन जहां मेरी भावनाओं की कोई कद्र ना हो, जहां केवल मुझे यह समझा जाए कि मैं सिर्फ काम करने की मशीन हूं, वहां मैं अपनी इच्छाओं को मारकर नहीं रह सकती.....एक न एक दिन सुशील को मेरी कद्र जरूर होगी,..मैं पढ़ी-लिखी हूं,..मैं सुशील को ये एहसास करा कर ही रहूंगी,..मैंने फैसला किया है कि...मैं नौकरी करूँगी, यहीं रहूंगी, अगर तुम्हें कोई एतराज है तो.....

विवान ने कहा, "अरे दीदी अपने भाई को इतना कायर समझती हो! जब तक दिल करे यहीं रहो! ईश्वर जीजा जी को जरूर सोचने की क्षमता देंगे!" 

मधु ने फैसला ले लिया था कि वो खुद की इच्छाओं की बलि नहीं देगी और सुशील को एहसास करवा कर ही रहेगी।


स्वरचित -अनामिका मिश्रा (लेखिका, कवयित्री) 

झारखंड, सरायकेला (जमशेदपुर)