गर्मी की बात

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


उन  दिनो  लू  चलती  थी 

दुपारी   लम्बी   होती  थी 

कमरों   में  छुप  जाते  थे 

अदबुध्द यादें बचपन  की 


घरवालों  के  सोते   ही 

हम  बाहर  आ जाते थे 

खेल  शुरु  हो  जाते  थे 

गुप्त  योजना  बनती थी 

अदबुध्द यादें बचपन  की 


टोकरी  का छाता  बनाके 

 डोरी  बांधके  रखता  था 

दाना  चुगते  ही  चिडिया  

टोकरी  में  फंस  जाती  थी 

अदबुध्द यादें बचपन  की 


पंखों  को  रंगो  से  रंगकर 

उनको  जब  छोडता  था 

छतपे  जाके  चंहकती  थी 

इधर  उधर  फुदकती  थीं 

अदबुध्द यादें बचपन  की 


ऐसे   गर्मी  कटती   थी 

उन दिनों बिजली न थी 

दीपक से रात कटती थी 

अदबुध्द यादें बचपन  की 


----  वीरेन्द्र  तोमर