परहित सरिस धर्म नहिं भाई।


परहित सरिस धर्म नहिं भाई।पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।


मार्च। आज सूर्योदय के साथ ही घर के कोतवाल का फोन आ गया ( आजकल जोधपुर में नाती कुशाग्र के साथ खेल रहीं हैं )। डर गया कि कोई बात हो गई क्या? पूछा क्या हो गया ?



बोलीं सब ठीक है। यहाँ मौसम साफ है। फिर सुबह सुबह फोन ? बोली ! आज से रामायण फिर शुरू हो रहा है। देख लेना। कोई और होता तो तुलसी दास की चौपाई,


परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।


सुना देता लेकिन बात कोतवाल यानी श्रीमती जी की थी, इसलिए बोला ठीक है।


बहरहाल तुलसीदास की उक्त चौपाई आज भी इस महान देश में जीवित है। जो मुझे जानकारी मिली है, इसके तहत गाज़ीपुर में सत्यग्रूप ऑफ कालेजेज के डाक्टर सानन्द सिंह ने कोरोना की महमारी के मुकाबले के लिए गाज़ीपुर और बलिया प्रशासन को एक एक लाख रुपया दिया है। पूर्व मन्त्री श्री ओमप्रकाश और उनके लोग चावल दाल आंटा नमक का थैला पहुँचाते देखे गए हैं।


आजमगढ़ में शरदा टाकीज वाले बाबू फौजदार सिंह ने जिला प्रशासन को इस महामारी से लड़ने के लिए दो लाख रुपया दिया है। आज़मगढ़ का जुझारू स्वयंसेवी संगठन भारत रक्षा दल जरूरतमंदों के यहाँ खाने का पैकेट पहुँचवा रहा है।


सड़कों पर पैदल घर आ रहे मजलूमों को लोग रास्ते में दाना पानी दे रहे हैं। इसमें वे मीयाँ भी हैं जिन्हें पाकिस्तानी बताने के लिए पेट पर बिके लोग सिर्फ बहाना खोजते रहते हैं। वे पुलिस वाले भी हैं, प्रशासन के लोग भी हैं जो पूर्णबन्दी में पैदल यात्रियों की पिटाई को लेकर बहुतों के निशाने पर थे या हैं।


वैसे पूर्णबन्दी को लेकर सड़कों पर सन्नाटा है। क्या होगा ? को लेकर हर कोई दहशत में है। लोगों के सामने जरूरी सामानों को लेकर दिक्कत है। जमाखोर इसका लाभ उठा रहे हैं। इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देशों से अखबार भरे हैं। बहुत से एंकरों को तो अब भी सबकुछ हरा हरा ही दिखाई पड़ रहा है। देश में व्याप्त इस स्थिति को अर्पित हैं कुछ ताजा शेर,


कहा साहब ने सबको गेट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।
ये सच है पर सभी को नेट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।


इधर सब ब्लेक में है दाल सब्जी
नमक आँटा भी,
उधर अखबारों में है रेट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।


उधर जुम्मन औ जोखू कहि रहे है
कछु नहीं पहुँचा,
इधर दावा है सबको डेट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।


दवा इलाज में हिन्दी की हालत 
खुद बेचारी है,
यहाँ व्यवहार में दिस दैट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।


अलग किस्सा है देशी फफककर 
हर सड़क पर रोए,
विदेशी हैं जो उनको जेट पर ही 
मिल रहा सबकुछ।


तुम्हारी माँ बहन की सड़क पर 
कैसे निकल आए,
अभी पिछवाड़े या फिर शर्ट पर ही
मिल रहा सबकुछ।


कोरोना की दवाई हो या उसका 
सही विश्लेषण, 
यहाँ पर वाट्सअप लिफ़लेट पर ही
मिल रहा सबकुछ।


धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
सम्पादक
राष्ट्रपुरुष चन्द्रशेखर सन्सद में दो टूक
लोकबन्धु राजनारायण विचार पथ एक
अभी उम्मीद ज़िन्दा है