युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
बेटी हूं, खुश हूं।
बेटी हूं, दुखी हूं।
खुद के अस्तित्व को पा रही हूं,
बेटी हूं, खुश हूं।
दुनिया के दूषण के कारण,
मां-बाप को होने वाली चिंता से,
बेटी हूं, इसलिए दुखी हूं।
मां के स्नेह के साथ और,
पिता के अटूट विश्वास के साथ,
स्वप्न को साकार कर रही हूं,
बेटी हूं, इसलिए खुश हूं।
अनेक अवरोध और मर्यादा होने से,
बेटी हूं, दुखी हूं।
बेटी के व्यक्तित्व के साथ,
मम्मी-पापा के प्यार को पा रही हूं,
बेटी हूं, खुश हूं।
अंत में प्रकृति की अद्भुत रचना हूं
बेटी हूं, खुश हूं।
बेटी हूं, खुश हूं।
वीरेंद्र बहादुर सिंह
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नोएडा-201301 (उ.प्र.)
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