ऐसा भी होता है

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

तूती और जूती का बड़ा गजब संबंध है साहब। जब तक तूती बोलती है तब तक सामने वाले की जूती चुपचाप रहती है। तूती खत्म तो समझो जूती शुरु। याद कीजिये, ऐसा भी वक्त था, जब विराट बल्ला दुनियाभर में कोहराम मचा रखा था तब कोच से लेकर बोर्ड तक नांदिये की तरह सिर हिलाया करते थे। अब नांदिये बड़े मनचले हो चले हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि बहती हवा से ‘अनील’ को हटाकर अपने इशारे पर नाचने वाले ‘रवि’ का विराट पर्व इसी पिपुड़ी की कारगुजारी थी। न रहेगी पिपुड़ी न हिलेंगे सिर। इसलिए पहले ‘सफेद’ पिपुड़ी छीन ली गई तो बाद में ‘लाल’ पिपुड़ी देने पर मजबूर कर दिया। वह भी एक दौर था, यह भी एक दौर है।     

पहले-पहल मैदान पर गरियाना नवजात शिशु की बचकानी हरकत सी अच्छी लगती थी। आगे चलकर गरियाने का ग्राफ अपने चरम पर पहुँचा और उधर बल्ला  भी अपना उग्र रूप दिखा रहा था। गरियाने और बल्ले में तालमेल था, इसलिए सब कुछ ठीक था। जैसे-जैसे बल्ला ठंडा पड़ता गया गरियाना अखरने लगा। वैसे भी दूध देने वाली गाय की लात भी मीठी होती है। उसका भी अपना मजा होता है। लेकिन दूध न देने वाली गाय और रन न बनाने वाला बल्ला दोनों कभी भी नज़रअंदाज़ किये जा सकते हैं।   

विराट पर्व की रवि जुगलबंदी ऐसी थी मानो जिसे छू लें वह सोना बन जाए। खिलाड़ियों को पुर्जों की तरह इस्तेमाल किया जाने लगा। कभी यह पुर्जा तो कभी वह पुर्जा। पुर्जे को भी पता नहीं चलता कि उसे क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है या फिर क्यों उठाकर फेंक दिया जा रहा है। जब तक यह समझते तब तक उनका कैरियर समाप्त हो चुका होता। कहते हैं कि रवि की किरणें कभी भेदभाव नहीं करतीं। सब पर एक समान पड़ती हैं। सबको एक समान चमकाती है। किंतु विराट पर्व में रवि का काम केवल विराट को चमकाना था, न कि पूरे दल को। यह एक ऐसा अजीबोगरीब रवि था जिसकी किरणें फिक्स्ड और लिमिटेड थीं।

आधुनिक विराट और प्राचीन विराट पर्व का अपना-अपना महत्व है। आधुनिक विराट पर्व में अज्ञातवास की अवधि विराट द्वारा निर्देशित होती थी। कौनसा खिलाड़ी कब तक खेलेगा यह सब उसी के हाथों में होता था। बोर्ड और कोच तो लल्लु-पंजु थे। यहाँ गुप्तमन्त्रणा, उचित आचरण का निर्देश केवल दिखावा होता था, जबकि करना बिल्कुल इसके विपरीत होता था। घर से लेकर परदेस तक जहाँ भी विराट की सेना गई वहाँ जीत का परचम फहरा दिया। सबको लगा यह तो विराट का कमाल है। 

जबकि विराट खुद भी जानते थे कि उनकी क्षमताएँ और सीमाएँ क्या हैं। अब इन्हीं क्षमताओं और सीमाओं के बारे में माइक स्टंप्स पर चीख-चीखकर बताने लगे हैं। चूंकि नांदियों ने उनकी पिपुड़ी छीन ली है, इसलिए उनका विराट पर्व समाप्त हो चुका है। विराट हमेशा बिना शोर-शराबे के दिवाली मनाने की सलाह दिया करते थे। अब उनके सारे पटाखे छीन लिये गए हैं। अब वह जितना चाहें उतना, जब चाहें तब अपनी चुप्पी वाली दीवाली मना सकते हैं।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657