युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
ठण्ड से काँपता जीव जन्तु यहाँ।
आजकल सूर्य भी दिखता कहाँ।
शाम होते बिस्तर पकड़ लेते सब,
सन- सन चलता हवा अब यहाँ।
ऊनी कपड़े भी तो अब गलने लगे,
ओंस की बूंद सुबह तो होती यहाँ।
रात और दिन में पता चलता नहीं,
कब सुबह कब शाम होती यहाँ।
जल रहें अलावों से कोई राहत नहीं,
शीत श्रृतु मौसम और जाड़ा यहाँ।
कार्य करने में भी हाथ सक्षम नही,
चोट कम हो लगी दर्द ज्यादा यहाँ।
लोग हफ्ते दो हफ्ते अब नहाते नहीं,
वर्षा का आगमन ठण्ड के साथ यहाँ।
नाम:- प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश