युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
झूम-झूम कर भोले देखो,
जग से नेह बढ़ाते हैं,
मन के भंवरे घूम-घूम कर,
भोले के गुण गाते हैं।
झूम -झूम कर भोले ...
भोले की इस प्रीत नें सारे,
जग में धूम मचाई है,
तम की फैली थी कालिमा,
उसमें सेंध लगाई है।
झूम-झूम कर भोले ...
दूर नहीं भोले हैं हमसे,
घड़ी मिलन की आई,
भोले ने मेरे जीवन में,
प्रेम की अलख जलाई।
झूम-झूम कर भोले ...
मैंने भोले की आंखों में,
जब-भी झांक कर देखा,
था जीवन रेखाओं का सच,
लगा नहीं कभी धोखा।
झूम-झूम कर भोले ...
आओ हिलमिल भोले के संग,
झूम-झूम कर गाएं,
धरा आसमां झूम उठे फिर,
भोले भी मुस्काएं।
झूम-झूम कर भोले..
(143 वां मनका)
कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'
गांधीनगर, इन्दौर,(म.प्र.)