फ़रोग-ए-दिल

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


फ़रोग़-ए-दिल बुझाया पर कर्ब-ए-तिश्नगी न गयी,

चादर-ए-महताब बिछाया पर तेरी दुजायगी न गयी। 


दिल-ए-मुज़्तरिब घायल हुआ है इंतज़ार में,

भूल बैठी ख़ुदा को पर तेरी बंदगी न गयी।


रूल-ए-गुलगूँ भी अब उजड़ा ख़ियाबाँ बन बैठा,

बाद-ए-सबा से पर हमारी वाबस्तगी न गयी।


शब-ओ-रोज़ उनकी ही तस्वीर है इन आँखों में,

बा-यकीं उनसे मिलने की दीवानगी न गयी।


तज़किरा न कर पायेंगे ज़माने में हम उनका रीमा।

लबों पर तब्बसुम दिल-ए-अफ़सुर्दगी न गयी।


डॉ.रीमा सिन्हा

लखनऊ-उत्तर प्रदेश