कलाधर घनाक्षरी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

अस्ति नास्ति द्वंद भूल, धार के  स्वधर्म मूल,

कृष्ण सीख जो  अकूल, ध्यान  में उतारिए। 

'मैं' प्रमाण नित्य  भान, जीव जानते सुहान,

स्रोत है, विचार वान,  आत्म में समाइए। 

एक मैं  त्रिलोक जान,स्वीय अन्य भेद म्लान, 

साधना करें  विहान,  'धी' विरक्ति साधिए। 

शुद्ध कर्म का निवेश,  भेंट दें  सदा रसेश,

साँझ जाप कृष्ण मंत्र,  में  प्रपन्न  साजिए। 

मीरा भारती।