युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
इठलाता इतराता मन मेरा,
बाहर तो मुस्काता है ।
ठुमक -ठुमक कर चलता देखो,
जग को ये हंसाता है ।
गिरता है, उठता है,
फिर चलता जाता हैं ।
पर अंतर्मन में नीर बहाता है ।
दुनियाँ के बाहरी दिखाओं में,
जीवन यूँ ही बीत जाता हैं ।
भरा -भरा सा दिखने वाला मन,
अंतर्मन में बूंद -बूंद सा रिसता जाता हैं ।
गरिमा राकेश 'गर्विता'
कोटा राजस्थान।