तब लिख पाई होगी मन का

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


पता नहीं

कितनी क्रांतियां जीती हैं उसने

स्वयं के ही अंतर्विरोधों से ,


पता नहीं

कितनीं ही बार रोका होगा

स्वयं उसके ही मन ने ,


पता नहीं

कितने एकांतों को जिया होगा उसने

किसी एकांत में ,


पता नहीं

कितनें हस्तक्षेप सहे होंगें उसने

समय के ,


पता नहीं

कितनीं मुस्कराहटों को छिपाए रखा

उसने आंसुओं में ,


पता नहीं

तलाशे होंगें कितने ही खत उसके

पाने को "पता" ,


और,,पता नहीं ,

कितनें शब्दों को समेटा होगा उसने

कलम की स्याही में,

तब "लिख" पाई होगी

अपने "मन" का !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश