युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
मैं बन जाऊँ पतंग तेरी,
तू बन जा मेरी डोर।
नेह बंधन से बाँध ले मुझको,
मैं चलूँ तेरी ओर।
कान्हा तेरा मेरा रिश्ता पावन,
है बड़ा अनमोल।
तुम बिन मैं अधूरी,
सम्पूर्ण तू भी कहाँ ये बोल?
खुले क्षितिज में उड़ना चाहूँ,
मन नाचे ज्यों मोर।
थामेगा जब तू डोर से अपनी,
जाऊँ क्यों मैं कहीं और?
होगा वो पल खुशियों से भरा,
क्लेष की न होगी जगह।
स्वप्निल पँखों पर उड़ा ले मुझको,
तू मेरी जीने की वजह।
उड़ती जाऊँ मैं पर्वत पार,
हो जहां हमदोनों का संसार।
कान्हा बस इतना ही कर दे उपकार,
दूँ मैं अपना जीवन तुझपे वार।
डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ)