पिता ही कर सकता है निस्वार्थ प्यार

आज तक माँ और बच्चों के प्यार की व्याख्या ,सभी किताबों में पढ़ने को मिलती हैं और सुनने को मिलती है !पर किसी कोने में चुपचाप एक पिता अपने बच्चों के लिए जो प्यार लुटाता है और दिखा भी नहीं पाता शायद वह प्यार अतुल्यनीय है! माता के लिए तो बहुत लिखा गया है पर पिता के लिए बहुत कम लिखा गया है! लेकिन शायद पिता का प्यार और त्याग माता से कभी कम नहीं था।

हम सबने सुना है जब किसी बच्चों को चोट लगती है तो उसके मुँह से पहला शब्द निकलता है 'माँ' लेकिन सड़क पार करते समय अगर सामने से भारी भरकम ट्रक आ गये तब मुख से निकलेगा 'बाप रे बाप' इसका तात्पर्य यह है की छोटी बहूत कठिनाई में तो माँ याद आती है! पर जब बहुत बड़ा विकट समय आ जाए तो  पिता ही याद आता है। 

हर पिता कि आपबीती जो शायद हर मां महसूस करती है ----

शर्मा जी सुबह सुबह ।अपने दफ़्तर के लिए निकलने वाले थे।

तभी अचानक क्षितिज ने एक पैकेट उनके सामने कर दिया.... पापा ! वापस करना है ये जैकेट।’

‛क्यों?’

‛फिट नहीं हो रहा...ज़्यादा टाइट है ।’

लंच बॉक्स देते हुए मां तमतमाई...अरे शर्मा जी ! आप भी न..! बेटा बड़ा हो गया है औऱ पहले से ज़्यादा तगड़ा भी , अब थोड़ा बड़ा साइज का जैकेट ही पहनेगा ना ....क़भी कुछ ख़याल तो रहता नहीं आपको... ! फिर से आप उसके लिए पुराना साइज ले आएँ होंगे । इतना महंगा वाला जैकेट लाने से पहले एक बार उससे पूछ भी लिया होता।

लेकिन अपनी पत्नी की बातों को बेहद गौर से सुनने के बाद भी शर्मा जी की आंखों में अपने लाड़ले के लिए अविश्वास दिखा.. क्षितिज ने बात ही ऐसी की थी...क्योंकि शर्मा जी ये भली भांति जानते थे कि उनका औऱ उनके बेटे का साइज़ एक ही है ।

'बेटा ! इस बार भी इंटरव्यू में वही पुराना जैकेट...

रूक गए शर्मा जी... शायद उनका गला भर आया था ।

‛छोड़िए न पापा ! इंटरव्यू ही तो देना है , कोई फ़ैशन शो में थोड़े न जाना है मुझें । आख़िर क्या फर्क पड़ता है ! जीवन की राह नई है और मंजिल नई , जैकेट पुराना ही सही।’

दरअसल क्षितिज की नज़र अपने पिता की बहुत पुरानी स्वेटर पर थी जो उसके पुराने जैकेट से भी कहीं ज़्यादा फटेहाल थी। उसके पिता प्रतिदिन दफ़्तर से घर देर रात तक पहुँचते थे और सर्दियां शुरू हो चुकी थीं ।

शर्मा जी ने अपनी लाचारी बतानी शुरू की....लेकिन बेटे, पैसे तो वापस नहीं मिलेंगे , ऐसा करते हैं शाम को हम दोनों एक साथ चलेंगे..इन्हें बदलकर तुम्हारे लिए दूसरी ले आएंगे ।

नहीं पापा , मेरे पास बिलकुल भी इस काम के लिए वक़्त नहीं है , मुझें अपने अगले इंटरव्यू की तैयारी पर फ़ोकस करना है....इस बार मुझें माफ़ कीजिए प्लीज ।

वो इतना बोलकर अपने कमरे की ओर बढ़ गया ।

अब शर्मा जी की पत्नी ने उनसे कहा....ए जी , अगर ये जैकेट आपमें फिट आएगा तो इसे अपने लिए भी रख सकते हैं क्योंकि इसका कलर औऱ डिजाइन मुझें बहुत पसंद आ रहा है ।

पत्नी की ज़िद पर बेचारगी में शर्मा जी ने जब उस जैकेट को नापना शुरू किया तो उन्हें बिलकुल फिट आ गया.... हालांकि उन्होंने जैकेट अपने साइज़ का ही लिया था क्योंकि दोनों बाप बेटे का माप एक था ।

मजबूरी में कोई चारा न देख शर्मा जी नया जैकेट पहनकर अपने मन में कुछ कुछ सोंचते हुए दफ़्तर के लिए निकल गए ।

उनके जाने के बाद माँ ने क्षितिज को आवाज़ देकर अपने पास बुलाया औऱ फ़िर उसके माथे को चूमते हुए अपनी डबडबाई आँखों को छुपाकर उससे कहा.....देखते देखते अब काफ़ी बड़ा हो गया है तू मुन्ना .........!!

क्षितिज भी अपने आंसू रोक न पाया औऱ अपनी माँ से लिपटकर बुदबुदाया........मेरी हर जरूरत का ख़याल रखने वाले मेरे पापा कभी गलत साइज़ ला ही नहीं सकते , लेकिन अगर वो जैकेट मैं पहनता तो मुझे चुभता बहुत चुभता.....

अक्सर कहा गया है कि बच्चे अपनी मां को बहुत प्यार करते हैं पर पिता को तो अपनी आत्मा में रखते हैं। बच्चे जब तक उंगली पड़कर चलते हैं तब तक मां के पल्लू से बंधे रहते हैं पर धीरे-धीरे जब बड़े होते हैं और अपने पिता का त्याग देखते हैं तो अनायास ही पिता की और प्यार और झुकाव बढ़ जाता है। बच्चों के लिए तो पिता ही किसी हीरो से काम नहीं होते हैं।

पिता के प्यार से बड़ा कोई प्यार नहीं पाया।

ज़रूरत हुई तो पिता को हमेशा साथ खड़ा पाया॥

लेखिका--ऊषा शुक्ला

11 एवेन्यू

गौर सिटी 2