अधूरापन

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


अधूरेपन में जो ख़लिश है,

सच्चे इश्क़ की वो तपिश है।


हाल पर हँसता है ज़माना,

ज़माने की हमसे रंजिश है।


ख़्वाब पूरी करता है खुशियां,

हक़ीक़त की अपनी बंदिश है।


अधूरा तो है कोई है दुनियां में,

अधूरापन पूर्णता की कोशिश है।


पूरे होकर रुक जायेंगे राह में,

अधूरापन क़ल्ब की जुम्बिश है।


शब-ओ-रोज़ जो राह दिखाये,

अधूरापन जीत की आतिश है।


शायरी जो करता मुक़म्मल रीमा,

अधूरेपन में होती वो कशिश है।


                 डॉ.  रीमा सिन्हा

              लखनऊ-उत्तर प्रदेश