उम्मीद कुमार की फजीहत

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

घऱ से बाहर निकलते ही उम्मीद कुमार को लगा कि जिनसे उसने झूठा वादा किया है, उसे वैसा नहीं चाहिए था। हर बार जब वह उम्मीद जगाने की कोशिश करता है हर बार उसके मुँह न चाहकर झूठा वादा निकल आता है। । पिछले पैंतालीस साल में उसने कई नौकरी के विज्ञापन देखे हैं लेकिन आज तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि नौकरी का विज्ञापन हाथी के दाँत की तरह खरा न निकला हो।

 आवेदन करने के तुरंत पछतावा होने लगता है। उसे लगता है कि वह केवल सरकार का खजाना बढ़ाने के  लिए आवेदन करता है। इस बार उसने बहुत सोच-विचारकर आवेदन भरा था, लेकिन मन ही मन निराश होकर बाहर आया। ऐसा नहीं है कि वह हमेशा बड़ी नौकरी के लिए आवेदन करता है, चपरासी तक की कई आवेदन कर चुका है। जान लें कि अब आदमी पैदा ही आवेदन करने के लिए हो रहा है। इधर-उधर से दो चपरासी को देख लें तो ऐसे परेशान हो जाता है, जैसे यह चपरासी नहीं, अधिकारी हो! इसीलिए चपरासी के नौकरी के पीछे दौड़ना अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य मानता है। उम्मीद कुमार मानतै है कि वह अकेला बेरोज़गार नहीं हैं। 

कई बार जब भी उसे मौका मिलता तो वह अपने ईर्द-गिर्द नज़रें उठाता तो उसे बेरोज़गारों की लंबी जमात मिल जाती। बेरोज़गारी और नाउम्मीदी जैसी चीजों को लाल कपड़े में बांधकर दो-चार दिन के लिए ताखे पर रख देने से जीने का साहस मिल जाता। अवसर और मजबूरियाँ किसी के जीवन में नहीं आतीं। बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो इनका सावधानीपूर्वक उपयोग करता है। बेरोज़गारी में एक रोज़गार को ढूंढ़ना कोहिनूर ढूँढ़ने जैसा है। 

फिर अगर अपनी ही धरती है तो हमें किसी और की बेरोज़गारी से क्या लेना-देना? यहाँ फसलें कम बेरोज़गी अधिक पैदा होती है। अगर आप बेरोज़गार हैं तो धरती भी आप पर गर्व करेगी। क्योंकि आप ठेकेदार से कमीशन नहीं कमा सकते। जिससे कि एक खराब सड़क बनते-बनते रह जाता है, इस तरह देश की परोक्ष रक्षा कर अपनी देश का सच्चा सपूत होने का प्रमाण देते हैं।

बेचारा आम आदमी वैसे भी नियति का मारा है। कभी-कभी गलती से थाली में बैंगन की सब्जी दिख जाती है और दिल्ली से आवाज आने लगती है कि गरीबों ने सब्जी खा ली, महंगाई बढ़ गई है। यूपी-बिहार से गरीब आते हैं तो तमिलनाड़ु में गंदगी फैल जाती है। कहा जाता है कि वे काम-वाम कुछ नहीं करते बल्कि सड़क किनारे बैठकर यहँ के विकास को घूरकर नज़र लगाते हैं। वैसे भी यहाँ गरीब दो सब्जियां खाते हैं, तो अमीरों को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए कम से कम बारह सब्जियां खानी पड़ती हैं।

 इस तरह गरीबों की वजह से महंगाई बढ़ने लगती है!! उम्मीद कुमार ने सुना तो उन्होंने तुरंत तमिलनाडु को पोस्टकार्ड लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया। जब-जब हिंदी पट्टी के लोग शौच साफ़ करने के आरोप से घिरे, बदनाम हुए, उम्मीद कुमार ने कार्ड लिखा। लेकिन गांधी जी होते तो हिंदी पढ़ते और जानते। यहां दिक्कत यह है कि असल बयान हिंदी में है और सरकार को अंग्रेजी के अलावा कुछ समझ नहीं आता। उम्मीद कुमार का विरोध जस का तस रह जाता।

खैर, बात तो बेरोज़गारी की थी। रोज़गार के आवेदन से कुछ दिन पहले मीडिया ने खूब प्रचार किया कि सरकार ने सबको रोज़गार दे दिया। एक रात सपने में नौकरी ने आकर उम्मीद कुमार को अपनी बाहों में भर लिया और कहा – क्यों बेकार में आवेदन करते हो। यहाँ नौकरियाँ नहीं धोखा खाने के आवेदन निकलते हैं। ध्यान रखना भाई, इस बार सरकार तुम्हारे वोट से ही बनेगी। इससे पहले कि उम्मीद कुमार लावा बनकर फूटे, हुज़ूर ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसका ज्वालामुखी अपने आप शांत हो गया।

 हुजूर ने हाथ में पांच सौ रुपये का कुरकुरा नोट पकड़ाते हुए धीरे से कहा, 'बच्चों के लिए मिठाई ले जाओ और कहना कि चुनावी चाचा ने तुम्हें प्यार दिया है।' इससे पहले कि वह कुछ सोच पाता, नोट उसकी जेब में फिसल गया। अब क्या हो सकता था! फिसला तो फिसला, पाँच सौ का हुआ। विनम्रता के कारण वह 'स्वचालित रूप से' मुस्कुराया, अंदर आग्रह का भाव था और रुककर उसके मुंह से 'धन्यवाद' भी निकला।

 वह इस बात पर विश्वास करने के लिए संघर्ष कर रहा था कि क्या हो रहा है जब हुज़ूर ने अंगूठा ऊपर उठाया और पूछा 'क्या यह ठीक है?' इससे पहले कि उम्मीद कुमार कुछ समझ पाता या सहमत होता या स्वीकार करता, सज्जन ने चश्मे से किसी को आँख मार दी। वह आदमी आगे बढ़ा और एक बोतल उठाई जिसमें शहद के रंग जैसा कुछ था।

 यह जानकर कि घर में पाँच वोट पड़े हैं, उसने कम्बल हाथ में ले लिया और बोला - 'अम्माजी के लिए, ठंड में यह काम आएगा।' इसके बाद हुज़ूर अपनी टोली सहित अगले अँधेरे में गायब हो गये। अम्मा ने कंबल देखा तो हंसने लगीं और बोलीं, 'मुफ्त में तो बहुत अच्छा है।' 

थाना पुलिस ने घर से 500 रुपये का नोट जब्त किया. बोतल उम्मीद कुमार के हाथ में रह गई। देखिये, उस पर 'बेरोज़गार' लिखा हुआ था और एक कुत्ते का चित्र बना हुआ था जिसका मुँह खुला था और आँखें लाल थीं। उम्मीद कुमार बार-बार उसकी ओर देखता रहा, जब तक कि वह नाउम्मीद न हो जाए।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार