मजे में हैं लुटेरे

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

"क्यों भाई चुनाव के पहले आयकर छापे पड़े विपक्ष के नेता की तरह मुंह लटकाए बैठे हो?"

"क्या बताऊं भैया ? नेताओं के सच्चरित्र, सुशीलता और राजनीतिक मूल्यों के विषय में कल मैं ने नव भारती चाय दुकान के पास आधे घंटे  भाषण दिया। किसी पुण्यात्मा ने मेरे हाथ पकड़कर मुझे  ऊपर से नीचे तक देखा और मुझे खींचकर बाजू में ले गया। देखा तो पता चला कि मानसिक चिकित्सालय के पास जी वही पागलखाने के पास मैं भाषण दे रहा था। जो बंदा मुझे पढ़ कर ले गया मुझे भागा हुआ पागल समझ कर अंदर डालने की सोच रहा था। किसी तरह उस पहलवान के कबंधी हाथों से छूट कर आने में पुरखे याद आ गए।"

"अरे मेरे पागल भाई ! बस इतनी सी बात पर बिलख रहे हो? सैकड़ों हजारों करोड रुपयों को घर की दीवारों में, छत में, बाथरूम के तहखानों में, विदेशी गुप्त खातों में गुप्त रूप से छुपाते रहने वाले बड़े नेताओं के बारे में क्या कहोगे? चुनावी मैदान में उतरना केवल दोनों हाथों भारी-भरकम रकम बटोरने और जनता को भेड़ बकरियां बनाने के लिए ही तो है ......पांच वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के एक विधायक ने सरेआम डंके की चोट पर यह बात कही तो मुंह बाए खड़े रहने के सिवा क्या कर रही थी जनता? पद मतलब वही कुर्सी के छूटने का डर है, वरना छोटे-मोटे नेता, विधायक कभी-कभी सच्चाई बयान करते रहते हैं कि राजनीति में आए हैं तो रुपए तो कमाएंगे ही न?"

"ठीक कहा फिर भी"

"फिर भी क्या? राजनीति से बढ़कर फायदेमंद कारोबार कौन सा है बोलो ? किस्मत ने साथ दिया तो एक रुपए के बदले लाख रुपए  बस लूटो और लूटते जाओ।  दो दशक पहले लोकसभा चुनाव का खर्च नौ हजार करोड रुपए का था जो अब पचपन हजार करोड़ तक पहुंच गया। फायदा अगर नहीं है तो क्यों पैसे पानी की तरह बहाये जाएंगे भैया?

मौका मिलते ही गली कोचों में विहार यात्रा वही चहलकदमी या सैर करते हुए दीन जन का उद्धार, जन सेवा  कहते हुए  माइकों के भी कान फाड़ते रहते हैं।"

"भाई!  खादी पहने हैं दीन जनों के उद्धार के लिए कहना ही बड़ा लतीफा है। लोकतंत्र के फटे हुए चादर में डाले गए पैबंदों का खुलासा है। उसके बारे में जितना कम बोले उतना अच्छा है हमारे स्वास्थ्य के लिए मानसिक शांति के लिए"

" बस उसी की कमी है भैया! आप भी  न।  नेता मतलब केवल कहने तक ही सीमित है करने के लिए वे शून्य हैं, ऐसा एक नेता ने कहा और यह सरकारी अधिकारियों का अटल विश्वास भी है। योजनाओं के जन्म से लेकर उसके अमल तक अधिकारियों के मेहनत से खुद का पालन पोषण करना राजनीति में नया मंत्र जो बन गया है। अगर वही करोड़ों कमाते हैं तो पूरा काम करने वाले हम क्यों न कुछ डकार जाएं ....कहते हुए अधिकारी अपने हिस्से की लक्ष्मी के लिए जन सामान्य के आहों और कराहों को दरकिनार कर उनके खून पसीने की कमाई को निचोड़ रहे हैं। बकासुर बनते जा रहे हैं। इस तरह नेता और अधिकारी दोनों के हाथों पिसेगा तो आम आदमी कहां जाएगा? भारत कब अग्रदेशों की पंक्ति में खड़ा होगा भैया?"

"देश के बारे में भाई तेरे तो भारी-भरकम सपने हैं!"

"ऐसा नहीं है भैया! उस नेता ने हजार करोड रुपए बनाए,  फलां अधिकारी के घर में  भी कई करोड़ों रुपए जप्त किए हैं , यह सब टीवी पर देखकर लोगों को लगता है करोड़ रुपए कमाना  शर्ट पहनने जितना आसान है। चौराहों पर, पान दुकानों पर, चाय दुकानों पर बस यही करोड़ों रुपए की ही चर्चा है, हल्ला है,  शोर है। यह सब सुनकर लगता है कि क्या हम कम से कम पचास लाख बचा नहीं सकेंगे? महीने के अंत में देखो तो खाली जेबें और उधार लेने के लिए जमीन आसमान एक करना रह जाता है।"

"यही तो बात है न?"

"फिर भी सभी पेट्रोल, डीजल और दैनिक जरूरतों की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं ....कहते हुए छाती पीट रहे हैं। लेकिन नेताओं अधिकारियों की लूट दुनिया को लपेटते  हुए किस कदर बढ़ रही है। इस पर क्यों कुछ नहीं सोचते? जमीन मकानों की कीमतें बढ़ गईं, कहते हुए हो हल्ला मचाते हैं, लेकिन दिन-ब-दिन राजनीति कितनी महंगी होने लगी है क्यों नहीं विचार करते? रियल एस्टेट की कीमतें रॉकेट की मानिंद बढ़ने के पीछे कारण भ्रष्टाचार से हासिल पैसा ही तो है न?. अब बताओ भैया! तुम्हारे या मेरे जैसे व्यक्ति का चुनाव में खड़े होना और जीतना क्या आजकल के ज़माने में हो सकता है? ऐसा है अगर तो अंतर कब मिटेंगे और कब समानता आएगी भैया?"

"अच्छा सवाल किया भाई तूने। अगर जैसा तुम कह रहे हो वैसा हो तो नेताओं के लिए मुश्किल नहीं होगी? उनको तो बस यही राजनीति में पैसा बनाना आता है। भाई जब तक जनता हरे नोटों के पीछे अपने वोट बेचती रहेगी, तब तक यही स्थिति  यथास्थिति बनी रहेगी। इसमें बदलाव आए और देश में खुशहाली आए कहते हुए अब सिर्फ ईश्वर से प्रार्थना भर कर सकते हैं। इसके अलावा क्या कर सकते हैं?"

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204