युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
है कहर ठंड का बरप रहा,
मन में कोई किंचित न हर्ष,
जीवन में दिखे न उत्कर्ष,
कैसे कह दूंँ ये नवल वर्ष।
जब कोयल गीत सुनाए ना
पपिहा पिऊ पिऊ चिलाए ना
ये शस्य स्यामला मांँ धरती
दुल्हन का रुप सजाए ना
विस्मित मन में नवल आकर्ष
कैसे कह दूंँ ये नवल वर्ष
चहुंँ ओर कुहासा है छाया
फैली ठिठुरन की है माया
कुहरे की फैली है चादर
भानु ने छुपाई है काया।
उजली मयूख देती न दर्श
कैसे कह दूंँ ये नवल वर्ष।
सूना सूना प्राकृत आंगन
सिकुड़ी कलियां देखो बागन
भौंरे तितली भी लुप्त हुए
दिन भोर सांँझ सा है लागत
दुबका मानव करता विमर्श
कैसे कह दूंँ ये नवल वर्ष।
अंग्रेजों ने छोड़ी बीमारी,
भारत ने कर ली तैयारी,
हाला के जाम छलकते हैं,
शानो शौकत की त्योहारी।
बाला बाले धुत पड़े फर्श
कैसे कह दूंँ ये नवल वर्ष।
जब चैत्र शुक्ल प्रथमा आए,
सब धुंध कुहासा छंँट जाए,
पक्षी चहके नीड़ों से निकल
मधुमासा चहुंँ दिशि छा जाए
पक गयी फसल अवनि पर हर्ष
तब आएगा ये नवल वर्ष
मन भाएगा ये नवल वर्ष।
डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
लखनऊ उत्तर प्रदेश।