युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
सोचती हूं, सच में कुछ तो है
जो नहीं कह पाता
ये कोहरा
लाख कोशिशों में भी ,
शायद द्रविभूत है अब तक
रात की प्रतिध्वनियों से ,
धूप के संग
कुछ देर को ठहर जाने की चाहत
या फिर,,
इच्छाएं आत्मसात कर लेने की
उसको अपने अंतस में ,
और,,जी भर पिघलना
उसके प्रथम स्पर्श से,,
बस इतना ही तो चाहता है
ये कोहरा
इस धूप से,,है न !!
अरसे बाद मुस्करा रही है
ये धूप मंद-मंद ,
व्याकुल सी
सोख लेना चाहती है
समस्त उदासियां कोहरे की
अस्तित्व में अपने ,,,
......................
अब,,धूप नम है
औऱ..
पिघलने लगा वो कोहरा भी
धीरे-धीरे !!
ये कोहरा
उदास सा कुछ,,चुप है,,थोड़ा गुमसुम भी
औऱ..वो चमकती धूप
अनमनी सी ,
न बिखर पाई..न संभल पाई ,
हैं व्याकुल दोनों ही
एक,,मन भर बिखरने को,
औऱ एक,,
जीभर,,,संभलने को !!
हां, जिद्दी हैं दोनों
एक ठहर जाना चाहता है ,
वो गुजर जाना चाहती है
महसूस करते हुए
बस, ऐसे ही ,
वो करता है इंतजार
रात भर ,,
सिर्फ औऱ सिर्फ
उसकी एक मुस्कराहट का ,
औऱ फिर,,गुजर जाता है
चुपचाप,,धीरे-धीरे,,
दोबारा,,फिर से आने को !!
न बातें खत्म होती हैं,,न किस्से,,
रात भर की सुगबुगाहट,,
मन के द्वंद्व,,उलझनें-सुलझनें,,
सभी कुछ तो है
दोनों के संवाद में !!
इस तरह
कोहरा औऱ धूप
अब ..दोनों ही खुश हैं
अपने-अपने किरदारों में !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश