रेबड़ी ही रेबड़ी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

कुर्सी पर बने रहने के लिए अश्रु जल ही पाद्य है, लंबी-लंबी फेंकना ही अर्ध्य है, झूठे आश्वासन ही आचमन हैं, टेलिप्रांप्टर भाषण ही मधुपर्क है, नए गुलदस्ते में पुराने फूल ही पुष्प हैं, रंग बदलना ही धूप है, दीपक है, शत्रुओं को चुप कराना ही चंदन है और पूँजीपतियों की जेब भरना ही विल्वपत्र है, लंबी रेस का घोड़ा बने रहने के आँगन में सौंदर्य तृष्णा रूपी खूँटा है, कुर्सीधारी का प्राण पुंज छाग उसमें बंध रहा है। पूँजीपति के सिर का खप्पर और प्रीति स्नेह है, प्रत्येक पाँच वर्ष के ठीक कोई न कोई नौटंकी या ड्रामा इसमें महाष्टमी है, और रेबड़ियाँ यौवन है।

चुनाव घोषणा करके होम के समय यौवन रेबड़ियाँ कुर्सीपति के प्राण समिधाओं में मोहाग्नि लगाकर शत्रु तंत्र से मंत्रों से आहुति दे ‘मानखण्ड के लिए शत्रु स्वाहा’, ‘बात मनवाने के लिए ईडी, आईटी आवा’, ‘प्रभावशाली कंलकियों को अपने  गुट में मिलाने के लिए वाशिंग मशीन में धोवा’ ‘मन प्रसन्न करने के लिए यह लोक परलोक स्वाहा’ इत्यादि, होम के अनन्तर हाथ जोड़कर स्तुति करना पड़ता है।

हे रेबड़ी देवी ! मोहमाया की कुर्सी रूपी अनंत नभ में तुम गुब्बारा हो, क्योंकि बात-बात में आकाश में चढ़ जाती हो, पर जब धक्का दे देती हो तब चुल्लू भर पानी में डूबकर मरने का मन करता है अथवा पर्वत के शिखरों पर हाड़ चूर्ण हो जाते हैं। जीवन के मार्ग में तुम रेलगाड़ी हो। जिस समय रसना रूपी एन्जिन तेज करती हो, एक घड़ी भर में चौदह भुवन दिखला देती हो। कार्यक्षेत्र में तुम सूचना क्रांति हो, बात पड़ने पर एक निमेष में उसे देशदेशांतर में पहुँचा देती हो। तुम संकटकाल में जहाज हो, बस अधम को पार करा दो।

तुम इंद्र हो. कुर्सीधारी-कुल के दोष देखने के लिए तुम्हारे सहस्त्र नेत्र हैं। स्वामी पर शासन करने को तुम वज्रपाणि हो। रहने का स्थान कालाधनगढ़ है, क्योंकि जहाँ तुम हो वहीं जीत है। तुम वोट हो। तुम्हारा जादू झकास है, उससे हार का अंधकार दूर होता है। तुम्हारा प्रेम अमृत है, जिसके प्रारब्ध में होता है वह उसी को चुनाव जिता देता है और लोक में जो व्यर्थ पराधीन कहलाता हो वही तुम्हारा शत्रु है।

तुम वरूण हो क्योंकि इच्छा करते ही वोट रूपी अश्रुजल से कुर्सीधारी पृथ्वी आर्द्र कर सकती हो। तुम्हारे नेत्र जल की देखादेखी हम भी गल जाते हैं। तुम सूर्य हो। तुम्हारे ऊपर आलोक का आवरण है पर भीतर अंधकार का वास हैं। हमें तुम्हारे एक घड़ी भर भी आँखों के आगे न रहने से दसों दिशा अंधकारमय मालूम होती है, पर जब माथे पर चढ़ जाती हो तब तो हम लोग उत्ताप के मारे मर जाते हैं। तुम प्राण वायु हो क्योंकि हम फेंकुओं के प्राण तुम में ही बसते हैं। तुम्हें छोड़कर कितनी देर जी सकते हैं? एक घड़ी भर तुम्हें देखे बिना प्राण फड़फड़ाने लगते हैं। तुम यम हो। यदि समय पर तुम्हारा ध्यान न रखें तो पल में नरक दिखा देती हो।

 यह यातना जिसे न सहनी पड़े वही पुण्यवान है, उसी की अनंत तपस्या है।  तुम हुमा हो। तुम्हारे मुख से जो कुछ बाहर निकलता है वही हम लोगों का वेद है और किसी वेद को हम नहीं मानते। तुम्हारे अनंत मुख हैं क्योंकि तुम बहुत बोलती हो। सृष्टिकर्ता प्रत्यक्ष ही हो। पुरुष के सत्ताधारियों के मनहंस पर चढ़ती हो। हार-जीत तुम्हारे हाथ में हैं, इससे तुमको प्रणाम है।  इस दिव्य स्तोत्र पाठ से तुम हम पर प्रसन्न होओ। समय पर वोट आदि दो। हम कुर्सीधारियों की रक्षा करो। भृकुटी-धनु के सन्धान से हमें मत हराओ और हमारी पार्टी को अपने धन से मालामाल कर दो।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657