युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
नवंबर महीने के तीसरे सप्ताह में मणिपुर के आकाश में यूएफओ (अन आईडेंटीफाइड फ्लाइंग ओब्जैक) यानी कि एक अज्ञात वस्तु उड़ती दिखाई दी तो भारी उहापोह मच गई थी। दहशत की वजह से इम्फाल एयरपोर्ट को कुछ देर के लिए बंद करना पड़ा। इतना ही नहीं, ताबड़तोड़ इस उड़ती उड़नतश्तरी के बारे में पता लगाने के लिए दो रफाल विमान रवाना किए गए। हाशीमीरा एयरफोर्स बेज से उड़े रफाल विमान के रडार सिस्टम इस तरह उड़ने वाले किसी अंजान पदार्थ को खोज नहीं पाए। फिर भी सुरक्षा की वजह से वायुसेना ने एयरडिफैंस रिस्पॉन्स सिस्टम को ऐक्टिव कर दिया।
जब भी यूएफओ (अज्ञात उड़ने वाली वस्तु) दिखाई देती है तो एलियंस के बारे में चर्चा एक फिर शुरू हो जाती है। पर पहली बार ऐसा हुआ था कि मैक्सिको की संसद में एलियंस के अवशेष प्रदर्शित किए गए थे। उड़न तश्तरी के विशेषज्ञ और जानेमाने पत्रकार जेम मौसन दावा करते हैं कि एक हजार साल पुरानी ममी किए गए अवशेष अन्य ग्रह के जीव यानी कि एलियंस के हैं और पेरू के एक गड्ढे से मिले हैं। इन मृतदेहों को नजदीक से देखने पर पता चलता है कि यह मानव अवशेष नहीं हैं।
उदाहरण के रूप में मनुष्य के हर हाथ और पैरों में पांच-पांच अंगुलियां होती हैं। जबकि इस अवशेष में मात्र तीन अंगुलियां हैं। इन अंगुलियों का कद भी मनुष्य की अंगुलियों की अपेक्षा लगभग दोगुना है। उनकी पसलियों का ढांचा भी मनुष्य से अलग है।
एलियंस की हड्डियां भी मनुष्य की हड्डियों की अपेक्षा हल्की होती हैं, पर मजबूत होती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि मैक्सिको के जिस इलाके में ये मृतदेह मिली है, उस इलाके में बड़े--बड़े भू-चित्र हैं। यह मामला ऐसा सवाल खड़ा करता है कि क्या एलियंस का इस इलाके से किसी तरह का संपर्क है।
अपने घर का दरवाजा खुला हो और कोई अतिथि घर में पधारे तो क्या हमें पता नहीं चलेगा? बल्गेरिया के वैज्ञानिकों ने परग्रहवासियों के पृथ्वी आगमन के बारे में की जाने वाली बातों पर इस तरह का सवाल खड़ा करते हैं।
बल्गेरिया की एकेडमी आफ साइंस की स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर लेजेर फीलीपोव का कहना है कि 'एलियन अभी भी हमारे आसपास ही उपस्थित हैं और वे हमेशा हमारा निरीक्षण करते रहते हैं। फीलीपोव ने यह भी बताया है कि 'एलियन हमारे दुश्मन नहीं हैं। हकीकत में वे हमारी मदद करना चाहते हैं, पर ऊनसे संपर्क करने के लिए हम अभी उतना विकसित नहीं हुए हैं'।
क्या एलियंस के पृथ्वी पर आने का कोई सबूत है? कोई निश्चित साक्ष्य तो नहीं है, पर इटली में स्थित आल्पस पर्वत श्रंखला के नजदीक वाल्कमोनिक से मिले प्राचीन चित्र दस हजार साल पुराने माने जाते हैं। इतना ही नहीं, इस बर्फीले इलाके में खोद कर बनाए गए दो लाख से अधिक रेखाचित्र सांकेतिक हैं।
इसमें कूछ रेखाचित्र अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष वीरों के लगते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हजारों साल पूर्व एलियंस पृथ्वी पर पहले भी आ चुके हैं। इसी तरह होंडरास, माया संस्कृति, इजिप्त के पिरामिडों के उजागर न होने वाले रहस्यों को भी लोग एलियंस के आगमन के साथ जोड़ते हैं।
यूएस के नेवी के भूतपूर्व पायलट रेयान ग्रेव्स ने दावा किया था कि वह ड्यूटी पर थे तो उन्होंने एलियन स्पेस क्राफ्ट (अंतरिक्ष यान) देखा था। यह दावा कर के उन्होंने सभी को चौंका दिया था। के.यू.एस. इंजीनियर्स ग्रुप उड़न तश्तरी के रिवर्स इंजीनियरिंग पर काम कर रहा है।
एक जानकारी के अनुसार नेवाडा राज्य में एरिया 51 नाम की सुविधा है, जहां एलियन पर शोध किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि न्यू मैक्सिको में 27 हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ने वाली उड़न तश्तरी गिर पड़ी थी। उसका मलबा और अन्य अवशेष 1951 में वहां से उठाया गया था।
इसी से इसका नाम एरिया 51 पड़ा था। यह भी दावा किया जाता है कि मृत एलियंस के अवशेष अमेरिका के पास हैं। 'एरिया 51 : एन अन लेंसर्ड हिंट्री आफ अमेरिकाज टोप सीक्रेट मिलिटरी बेज' नामक पुस्तक में पत्रकार एनी जैकबस ने असंख्य मजेदार चर्चाएं की हैं। उन्होंने अपने एक संपर्क को जोड़ कर स्पष्टता की है कि बच्चे के कद के एक्स्ट्रा-टेरिस्ट्रियल एलियन पायलट्स को पकड़ा गया था। कोई साक्ष्य न होने से वह एलियंस और उड़न तश्तरी के बारे में कुछ जानते भी हैं, यह कहना मुश्किल है।
अभी जल्दी ही एक ऐसी घटना घटी है, जिसकी वजह से खगोलशास्त्री भी गेल में आ गए हैं। वैज्ञानिकों को 94 प्रकाशवर्ष दूर के ब्रह्मांड से एक प्रचंड शक्तिशाली रेडियो संदेश मिला है। यह संदेश किस का हो सकता है, इन अटकलों के बीच इसकी जांच शुरू हो गई है। वैज्ञानिकों ने उतनी दूर से आए ल्लध164595 नामक तारा से मिले इस सिग्नल को रहस्यमय माना है। बहुतेरे शोधकर्ताओं का तो यह भी कहना है कि संभावना है कि वहां कोई परग्रहवासी हों।
यह संदेश रसियन खगोलशास्त्री एलिजाबेथ पानोव को 15 मई, 2015 को मिला था। यह सिग्नल रसिया के रतन-600 नामक रेडियो टेलिस्कोप में पकड़ गया था, जहां एलेक्जेंडर शोध कर रहे थे। 2.7 सेंटीमीटर की वेबलेंथ वाला यह सिग्नल हो सकता है शायद वहां रहने वाले किसी परग्रहवासी ने भेजा हो। यह सिग्नल एक ही बार में रुक नहीं गया। टेलिस्कोप पर 39 बार सिग्नल पकड़ गया है।
हो सकता है किसी ने बारबार सिग्नल भेजा हो।
हम ब्रह्मांड से सिग्नल प्राप्त कर रहे हैं, इसका भी समझने का प्रयास हो रहा है। इन सिग्नलों के बारे में जांच करने वाले चीन के अंतरिक्ष वैज्ञानिक और खगोलशास्त्री हेंग शू द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार ये रेडियो तरंगें मजबूत क्षेत्र वाले न्यूट्रोन स्टार से निकलती हैं। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि आखिर ये सिग्नल क्यों भेजे जा रहे हैं?
पांच साल पहले कनाडा की शोधकर्ताओं की टीम ने अंतरिक्ष में डेढ़ अरब प्रकाशवर्ष (अंतरिक्ष की दूरी नापने का मानक) दूर से मिले सिग्नल्स एलियंस द्वारा भेजने की संभावना व्यक्त की है। सर्वप्रथम साल 2007 में फास्ट रेडियो बर्स्ट (एफआरबी) नामक मात्र एक मिली सेकेंड के इस रहस्यमयी रेडियो सिग्नल्स की खोज हुई थी। अंतरिक्ष खोज के दौरान साल 2009 में इकट्ठा किए गए डाटा की जांच में पकड़ी गई।
आवाज का यह रेडियो सिग्नल अलग किया गया था। जल्दी ही कनाडा की खगोलशास्त्रियों की टीम ने एफआरबी के बारे में की गई नई खोज की विस्तृत जानकारी प्रसिद्ध अखबार नेचर में प्रकाशित कराया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस तरह के सिग्नल दूसरी बार मिले हैं, जो एलियन के अस्तित्व का सब से बड़ा सबूत है। अमेरिका के हार्वर्ड-स्मिथसनियन सेंटर फार एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर एविड लोएब के अनुसार ये रेडियो सिग्नल्स परग्रहवासियों द्वारा विकसित एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का बड़ा सबूत है।
अब तक इस तरह संदेहास्पद 60 रेडियो सिग्नल्स पकड़े गए हैं। पर साल 2015 में पुर्टो रिको में स्थित एरोसीबो रेडियो टेलिस्कोप ने जो रेडियो सिग्नल पकड़ा था, माना जाता है कि वह एलियंस द्वारा भेजा गया फास्ट रेडियो बर्स्ट का सब से बड़ा सबूत है।
आधी सदी से परग्रहवालियों पर शोध करने वाली संस्था सर्च फार एक्स्ट्रा-टेरिस्ट्रियल (सेटी) ने भी इस सिग्नल में रुचि लेकर इसके बारे में जांच कर रही है।
वैज्ञानिकों ने अंदाजा लगाया है कि 94 प्रकाशवर्ष दूर से आया यह सिग्नल आसानी से पृथ्वी तक नहीं पहुंच सकता। क्योंकि पृथ्वी तक की दूरी तय करने के लिए सिग्नल जहां से प्रकट हुआ है, वहां 100 अरब से भी ज्यादा वाट ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। तभी यह सिग्नल पृथ्वी जैसे दूर ग्रह तक इतनी शक्तिशाली रूप से पहुंच सकता है। बाकी तो ब्रह्मांड से अनेक किरणें आती हैं, जो बहुत कमजोर होती हैं। यह सिग्नल जिस तारा से आया है, उसका आकार सूर्य के बराबर ही है और उसी की तरह एक ग्रह की प्रदक्षिणा भी करता है। इसलिए यह एक तरह का सूर्यमंडल है।
वेसे तो नासा ने शनि के उपग्रह एंसेल्कस पर जीवन होने की संभावना व्यक्त की है। इतना ही नहीं, मनुष्य रह सकें, इस तरह के 20 ग्रह नासा केप्लर मिशन द्वारा खोजे गए हैं। अगर मनुष्य के जीवन के लिए इन ग्रहों का वातावरण अनुकूल है तो ऐसा नहीं हो सकता कि वहां किसी प्रकार का जीवन न विकसित हुआ हो?
कुछ सालों पहले रूस के बाल्टिक समुद्र के किनारे स्थित ताल्लीन शहर में दुनिया भर के करीब 2 सौ वैज्ञानिक यह जानने के लिए इकट्ठा हुए थे कि ब्रह्मांड में कोई अन्य बुद्धशाली जीव का अस्तित्व है क्या? यह बुद्धिशाली जीव शायद 'कवासर' के नाम से परिचित तारों की शक्ति को नाथ सका होगा।
कहीं कोई जीव शायद 'अमर' बन सका होगा। कहीं न कहीं कोई न कोई संस्कृति हमारे साथ संदेशव्यवहार बनाने का प्रयास कर रही होगी। ये सभी बातें और संभावनाएं 'स्टार्स वार्स' या 'ब्लैक होल' जैसी साइंस फिक्शन फिल्मों से नहीं ली गईं। इन संभावनाओं को खगोलशास्त्र के गंभीर वैज्ञानिकों ने सोचा है।
अगर अंतरिक्ष के अरबों तारों के अगणित ग्रहों में से किसी पर भी मानव संस्कृति विकसित हो और उन्होंने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में विकास किया हो, तो वे जरूर अपने होने की घोषणा रेडियो संदेश के द्वारा करते होंगे। उन्हें यह उम्मीद होगी कि ब्रह्मांड में अगर कोई दूसरी बुद्धशाली सृष्टि होगी तो वह उनके संदेश को पकड़ कर उनसे संपर्क करने का प्रयत्न करेगी।
तब से शुरू हुई खोज आज भी चालू है। अब तक लगभग एक हजार तारों की खोज हो चुकी है। कायदे से अभी तक परिणाम 'नकारात्मक' ही आया है। ये तारे यानी की कुल तारों का एक प्रतिशत (सौवां भाग) का दस लाखवां भाग ही हुआ।
गणित की दृष्ट से देखें तो अगर कुल दस लाख संस्कृतियां हों तो उनमें से एक को खोजने के लिए कम से कम दो लाख तारों की जांच करनी पड़ेगी। और यह काम भूसे के ढ़ेर से सुई खोजने से भी मुश्किल है।
भारत के जानेमाने खगोल वैज्ञानिक डा.जे.जे. रावल का कहना है कि हमारी आकाशगंगा में ऐसे लाखों तारे हैं, जो सूर्य की तरह बड़े हैं और इनकी ग्रह श्रंखला भी होगी।
और ब्रह्मांड में इस तरह के लाखों करोड़ों मंदाकिनी हैं और इन हर एक में करोड़ों तारे हैं। इस तरह किसी एक ग्रह श्रंखला में कहीं तो जीवन का विकास हुआ ही होगा।
कहीं न कहीं हमारे जैसे जीव रहते हैं, यह विश्वास करने वाले वैज्ञानिक इसे खोज निकालने की कुशलता तो रखते हैं, पर साधन और इसके पीछे आने वाला खर्च उन्हें रोकता है।
एक खोज के अंत में खगोलशास्त्री ऑलिवेर ने घोषणा की थी कि 3 सौ फुट व्यास की एक हजार रेडियो दूरबीनों की श्रृंखला बनाई जाए तो असंख्य तारों की जांच की जा सकती है। इस पर कितना खर्च आएगा, पता है? सौ अरब डालर। दूसरी बुद्धिजीवी सृष्टि को खोजने का प्रयास 'सर्च फार एक्स्ट्रा-टेरिस्ट्रियल इंटेलिजेंस' (सेटी) के नाम जाना जाता है। इसके पक्ष में प्रखर वैज्ञानिक हैं। मानलीजिए कि हम से भी तेज लोग कहीं हैं, पर उन्हें हम से संपर्क करने में कोई रुचि नहीं है। वे कोई संदेह भी नहीं छोड़ते तो क्या हो सकता है?
वाशिंग्टन में खगोलविद् वुडके सुलिवान के मंतव्य के अनुसार अगर वे आंतरिक संदेश व्यवहार के लिए रेडियो तरंगों का उपयोग करते हैं तो उनकी एकाध छटकी तरंग पकड़ी जा सकती है। उसी तरह हमारी एकाध रेडियो या टेलीविजन तरंग से वे भी पृथ्वी के स्थान, भ्रमण गति, भ्रमण कक्ष, ऊष्णता मान और ट्रांसमिशन टावर की ऊंचाई तक जान सकते हैं।
पर क्या सचमुच दूसरी किसी जगह मानव जैसा बुद्धशाली जीव होने की संभावना है? पृथ्वी पर जीवसृष्टि की जब शुरुआत हुई थी यहां जैसा वातावरण अगर कहीं और है तो वहां जीवसृष्टि संभव हो सकती है। मीथेन गैस, पानी के स्रोत, नाइट्रोजन, अमोनिया कार्बन डाइआक्साइड, आक्सीजन सल्फर, मिट्टी, पानी इतने पदार्थ हों तो एमिनोएसिड पैदा होगा। यह एमिनोएसिड प्रोटीन के रूप में मकान की 'ईंटे' हैं। इनमें से जीवन का विकास होगा। यदि पृथ्वी पर जीवन है तो कहीं और भी हो सकता है। क्योंकि विश्व में कोई भी वस्तु एक जैसी देखने को नहीं मिलती-एक से विशेष ही होती है।
आक्सफोर्ड की एक महिला वैज्ञानिक ने एक चौंकाने वाली और हालीवुड के फिल्म निर्देशकों को मोटी कमाई करने के लिए ललचाने के लिए भविष्यवाणी की थी कि 'इसी सदी में ही मनुष्य को परग्रहवासी (एलियंस) का सामना करने के लिए सुसज्जित होना पड़ेगा'। यूनाइटेड किंगडम के एक जानेमाने भौतिकशास्त्री के अनुसार सरकारों को अब पृथ्वी के उस पार रहने वालों के साथ एनकाउंटर के लिए तैयारी कर देनी चाहिए।
जबकि परग्रहवासियों के अस्तित्व का परिचय हम सब से हो जाए तब भी उनके साथ रेडियो या लेसर द्वारा बातचीत करने में दशकों लग जाएंगे। क्योंकि प्रकाश की गति से तेज दूसरी कोई वस्तु प्रवास नहीं कर सकती। इसलिए उनसे एकतरफा बात करने में ही, आप का संदेश उन तक पहुंचने में ही संभवत: पचास या सौ साल बीत जाए ऐसा बर्नेल ने कहा था। जबकि हमें परग्रहवासियों को अपने बारे में जानकरी देनी चाहिए या नहीं, इस बारे में वैज्ञानिकों में मतभेद हैं।
प्रतिष्ठित वैज्ञानिक स्टिफन हेकिंग्स ने चेतावनी देते हुए कहा था कि संभावना है कि परग्रहवासी हमारी पृथ्वी की सुख समृद्धि लूट सकते हैं। हमें मात्र यह जानने की कोशिश करनी है कि हम जिनसे मिलना नहीं चाहते, उनके अंदर बुद्धीशाली जीवन कैसे विकसित होता है।
आकाश में असंख्य तारे हैं। उनके असंख्य ग्रह हैं। कहीं तो जीवन होगा ही। अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा के भारतीय मूल के वैज्ञानिक अमिताभ घोष का मानना है कि पृथ्वी के अलावा कहीं जीवन नहीं है तो यह चमत्कार ही माना जाएगा।
उनके कहने के अनुसार ब्रह्मांड में अन्यत्र जीवन है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए तीन चुनौतियां हैं। प्रथम तो ब्रह्मांड के किसी इलाके में लाखों साल पहले जीवन प्रकट हुआ हो और उसका अस्त भी हो गया हो, आज जब हम अन्य ग्रह में जीवन की तलाश कर रहे हैं तो हो सकता है कि अब वहां जीवन न हो। उदाहरणस्वरूप अन्य ग्रह के लोगों ने चार अरब साल पहले हमारी पृथ्वी की खोज की थी तो उस समय उन्हें पृथ्वी के जीवन का पता न चला हो और उन्होंने अपनी इस खोज पर पूर्णविराम लगा दिया हो।
क्योंकि पृथ्वी पर जीवन का उद्भव साढ़े तीन अरब साल पहले हुआ था। दूसरी चुनौती यह है कि अन्य ग्रहों का जीवन अरबों-खरबों मील दूर है और इतनी लंबी यात्रा करने में मनुष्य सक्षम नहीं है। क्योंकि इतनी दूर यात्रा करने में सैकड़ों साल निकल जाएंगे। 30 हजार प्रकाशवर्ष दूर किसी ग्रह पर जीवन हो तो भी पृथ्वी और उसके बीच इतनी दूरी है कि उनसे किसी भी तरह संपर्क नहीं किया जा सकता।
तीसरा ब्रह्मांड में अन्यत्र जीवन शायद हम जैसा न हो, हम जैसे मनुष्य, प्राणी और पक्षी न हों। हमारा जीवन कार्बन आधारित है, वहां सिलिकोन आधारित हो सकता है और यह भी हो सकता है कि वे खुद को अलग तरह से प्रदर्शित करते हों। पृथ्वी के बायोलाॅजिकल टेस्ट उन पर न उतर सकें।
अन्य ग्रहों में जीवन की खोज करने वाले वैज्ञानिकों को विश्वास है कि जीवात्माएं रेडियो सिग्नल्स भेज सकें इतना आगे तो निकल ही गई होंगी। मंगल पर भेजे गए यान वहां जीवन है या नहीं, यह साक्ष्य तो भेजेंगे ही। वह सूक्ष्म स्वरूप भी हो सकता है। जबकि हमारे सूर्यमाला के बाहर के ग्रहों में जीवन के साक्ष्य तलाशने में अभी सालों तक संभव नहीं है। शायद सौ साल बाद संभव हो सके।
एलियंस के बारे में महान वैज्ञानिक और भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने कहा था कि ब्रह्मांड में अपनी पृथ्वी की अपेक्षा बड़े ग्रह और तारे अस्तित्व रखते हैं, इसलिए एलियंस के अस्तित्व की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। महान वैज्ञानिक आल्बर्ट आइंस्टीन ने एक बार अवलोकन कर के कहा था कि एलियंस अस्तित्व में नहीं हैं यह मान लेना समुद्र से एक चम्मच पानी ले कर उसमें देखना कि समुद्र में शार्क या ह्वेल मछली नहीं है इसके बराबर है।
परग्रहवासियों के अस्तित्व के मामले में, उनकी खोज के बारे में आज तक अनेक बार चर्चा हो चुकी है, लेख लिखे गए हैं, परंतु यह विषय इतना जटिल बनता जा रहा है कि कभी मनुष्य का दिमाग काम नहीं करता। अंत में यही कह कर मन को मनाना पड़ता है कि ईश्वर की लीला अपरंपार है।
वीरेंद्र बहादुर सिंह
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