अटरम् - शटरम् , सब खटरम..........!

क्या अजीब लिखा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा तो क्या हुआ। सामने वाले ने मेहनत की है, ताली बजा देते है। वो भी खुश और अपने पे कोई कर्ज भी नहीं रहेगा। कई कवि मंच पर जैसे ही नजर आते है। सारे श्रोता मुस्कराते हुए एक साथ हंस जाते है जबकि कवि महोदय ने एक शब्द भी नहीं कहा। कवि सीरीयस और श्रोता हास्य से सराबोर। व्यंग्य का कवि और हास्यरस का कवि हमारे यहां खुद सीरीयस होता है लेकिन श्रोताओं को हंसाता है। अगर हास्य का कवि हंसने लगे तो श्रोता गंभीर हो जाते है।

 सीरीयस कवि जब कविता पढ़ता है किसी को हंसी नी आरी होती है तो बेचारे को बोलना पढ़ता है कि अब ताली बजाओ, कविता खतम हो गई, क्या खाली हाथ भेजोगे। ऐसा करोगे तो तुम्हारा ही अपमान होगा। कभी, इससे उल्टा भी होता है, जैसे ही कोई कवि मंच पर खडा़ होता है, पहले, इस बात की ग्यारंटी देता है कि कविता पढ़ने पर मजा नी आवै तो, खर्चा पानी काट के पैसा वापस कर दूंगा।

कोई कवि लश्कारे लेकर रोमांटिक कविता पढ़ रहा होता है तो सारे जवान और बुढे़ मजे ले रहे होते हैं और बच्चे पीछे सो रहे होते है। कवि महाशय भी कविता की लय में लहराते हुए कविता पढ़ रहा होता है। मन ही मन खुश होता है कि आज का कवि सम्मेलन मैंने ही जीत लिया।

बहुत से कवि अपनी ही पत्नी पर कविता सुनाते वक्त इतने सीरीयस हो जाते हैं, लगता है बहुत डरे हुए हैं। जैसे, पुण्यप्रतापी पत्नीजी सामने ही बैठी हो। ऐसा नहीं होता है तो खूब उछल-उछल कर, चिल्ला-चिल्ला कर कविता सुनाते है और मंच गरजाते हैं। कुछ अपने दुबले, गंजे पन पर खुद का मजाक उडा़ते है। देखो मजाक बनाने के लिए टारगेट का होना जरूरी है कोई स्वयं को, कोई अपनी पत्नी, पडो़सी, पडो़सन, ऐंगे, भेंगे, काणे, ढेरेपन, मोटे,दुबले, गुंगे, बहरेपन का ही मजाक बनाकर कविता में हास्य पैदा करते हैं। ऐसे कवि महान होते हैं जब खुद जलते हैं तो श्रोता हंसते है। 

कुछ कवि बिना हिले डुले सीधी रेखा बन कर कविता सुनाते हैं, सब सीरीयस होते हैं आंखों में आंसू आते हैं, यही यथार्थ  हैं, वातावरण गंभीर है, वाह, क्या बात से कविता सराही गई। अक्सर देखने में आता है कि वीर रस का कवि दुबला पतला होता है, आवाज उसकी तीर की तरह कोने तक जाती है। हास्य रस के कवि भारी भरकम होते हैं, कोने तक आवाज पहुंचाने के लिये, दम लगाना पढ़ता है। रोमांटिक कवि समरूप समतल होते हैं, अपनी आवाज को दूरी के हिसाब से सेट कर लेते है।

 कहां आवाज उठानी है, कहां लहरानी है और कहां गिरानी हैं। वाह क्या बात है वीर रस के कवि जो अपनी पत्नी पर कविता सुनाते हैं और रोमांटिक कवि जो आवाज की लय पर लहराते हैं उनमें कुछ समानता होती है जैसे कि चरम पर इनकी भी आंखें बंद होती है और उनकी भी। इनको भी बिजलियां गिरते दिखाई देती है और उनको भी। बस अंतर यह है कि ये खुद की छाती पीटते हैं और वो लय और ताल पीटते है।

सबकी अपनी अपनी कला हैं, पैंतरें हैं मगर ये भी एक कला हैं । दुनियां में सबसे मुश्किल होता है किसी के चेहरे पर मुस्कराहट लाना, किसी को हंसाना। चाहे मंच पर बंदर-भालू बन जाऐं, खुद का मजाक उडा़ऐं, इनकी पत्नी भी यह जानती है कि पतिदेव, किसी को हंसाकर महान काम करके आ रहे हैं और नेताओं की तरह किसी को रूलाकर नहीं आ रहे हैं। ये जो व्यंग्य है, आपको भी मजा आया होगा। यह यथार्थ बहुतों के साथ ऐसा ही होता हैं। कवियों की दुनियां है मंच है श्रोता है, तो जो भी हंसे, हंसाऐ  मजा दें, चेहरे खिलखिलाऐं वो सब मटरगश्ती करणम् सो, अटरम् - शटरम् , सब खटरम..........!

"न मजो नी आवै तो पैसों वापिस"


 --मदन वर्मा "माणिक "

इंदौर, मध्यप्रदेश

मो. 6264366070