युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
निश्चित रूप से
ऐसा जरूर हुआ होगा
तुम्हारे साथ भी कि
जीवन में बहुत से किस्से
न कहते बनते हैं,,और न लिखते ,
बस, वो घटित होते रहते हैं
अपने ही क्रम में,
और हम ,, किंकर्तव्यविमूढ़ से
अनुमति देते रहते हैं उनको
उसी प्रवाह में
"होते" रहने की
बिना कोई अंतर्विरोध किए ही ,
कुछ कर भी नहीं सकते,,है न !!
यदि उस समय हम
उनका होना नहीं रोक सके ,
तो फिर
क्यों न उसे,, होने ही दिया जाए
उनकी पूरी तन्मयता के साथ ,
शायद, जीवन की नियति यही है,,,है न !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश