युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
चढ़े पेड़ मा बंदर मामा।अब्बड़ खावैं ओहर आमा।।
संझा–बिहना कूदय डारा।घूमय दिनभर पारा–पारा।।
खीस–खीस ले दांँत दिखाये।नान–नान लइका डर्राये।।
लूटय जम्मों खई–खजानी।नइ मांँगय कोनो ले पानी।।
अपन पिला ला पीठ चघाये।पुचकारत वो मया दिखाये।।
नहीं कलेचुप बंदर बइठे।कोनजनी काबर बड़ अइठे।।
कोरी भर राहै संँगवारी।जाये सँघरा कोला बारी।।
छिदिर –बिदिर कर के सब जावैं।जाम पपीता छीता खावैं।।
भेद–भाव बंदर नइ जाने।इक दूसर ला अपने माने।।
जीयत भर ले साथ निभावैं।बिपत परे मा आगू आवैं।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com