युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
मैं भी "जी" लेती वो कुछ लम्हें "जी भर"
न जानें वो बरस क्यों लौटकर नहीं आते !!
यूं ही, एक दिन गुजर जाएंगे बिन कहे ही
जाने वाले कभी भी बोलकर नहीं जाते !!
कभी खुशी-कभी गम, वक्त की तो नेमतें
हम कोई तोहफा वहां से तोलकर नहीं लाते !!
संभाले हूं कब से बस "एक चाह" ही मन में
हां, कुछ ख्वाहिशें ऐसी सौंपकर नहीं जाते !!
हां, ये वक्त के लेखे.. भला कैसे मिटा दें हम
कभी किताबें, अधखुली छोड़कर नहीं जाते !!
पढ़ा हर एक हर्फ हमने, बग़ैर शिकायत ही
रहा बाकी, बचा वो पन्ना मोड़कर नहीं जाते !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश