उपनिषद् भाव

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


 उपनिषद् ज्ञान यह  देती,ह्रदय आवास है आत्मिक।

 गुणों का है समुच्चय  वह, वही देही, वही साक्षिक। 


जहाँ से निःसृता गीता, उपनिषद दिव्य सुधि   लाती।

वहीं विद्या सुधा रहती, अविद्या नाश   मग     जाती।

प्रथम धर  त्याग जगहित में, गहें नैवेद्य नैयायिक।  टेक 1


रहे यह देह  आत्मा हित,  जिसे भुवि  ऊर्ध्व गति देना।

न तन हित साधती आत्मा, रचे  पुरुषार्थ युुत सेना।

उपासें आत्म हिय छवि में, वही मनुधर्म  नैसर्गिक। टेक 2


वहीं निर्गुण  सगुण सजते, उपनिषद मंत्र यह कहता।

उसी  के ध्यान में रहकर,  स्वधर्मी  श्रेय  को वरता।

न प्रेयस को सुपथ माने,  तजे अतिभोग  अवसानिक। टेक 3


विषय सुख  क्षीण बल करते, तजें,  रह आत्म  की संगत।

क्षमा, शम, दम,  तपस वर लें, पराया  धन लगे  अवनत।

विजय अविराम सच की हो,  भरत संदेश साँकल्पिक।टेक4


मीरा भारती,

पटना,  बिहार ।