युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
होता है न
कुछ अपने लिए भी कहूं,,
अपना भी कुछ सुनूं ,,
कहीं फटकारूं, या दुलार दूं
स्वयं को भी !!
रखूं अपने लिए भी संभालकर
मन के आसमान में
भले ही एक मुट्ठी भर धूप
या कि थोड़ी सी बारिशें,,
छटांक भर झरती हुई बरफ
या कि थोड़ा सा बसंत !!
ज्यादा कुछ तो नहीं
बस लिखना चाहती हूं
स्वयं के लिए भी 'एक कविता'
ताकि बची रह सकूं
भले ही "थोड़ी सी ही" कहीं !!
हो सकता है
स्वयं को "स्वयं में" देखने की
छोटी सी जिद् हो यह ,
पर, कोई और विकल्प है ही कहां यहां !!
यूं ही शाय़द थोड़ी अजीब हूं मैं है न !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश