नीरव दिल बगिया

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 


मन की अवगुंठित आशाएं

चिर प्यासी है विस्मित आंखें 

नीरव दिल बगिया में देखूं

सस्मित यौवन की भाषाएं ।


प्रीत प्रदर्शित कर न सकेगी

कोमल मृदुल मधुर है कुंठित 

आस दीप का जला सकेगी

मिलन समर्पण को उत्कंठित।


मृण्मयी मृगनयनी चंचला

नैना कटार की तीव्र  धार

जिस ओर चले करती मर्दन

मौन धरे पर मारे हजार।


नव किसलय से लदी वल्लरी

झूम झूमकर है मदमाती

बन मधुप डूबा प्रीत मय में 

पी हाला चिर प्यास बुझाती


बचपन जीवन के स्वर्णिम पल

खिलता यौवन सस्मित पल-पल 

पर मयूख बिन मकरंद कहां

प्रिय बिन प्रेम संदेश न गहा।


आशाएं अवगुंठित अब भी

चिर पिपास थी प्रीत मिलन की

भरकर भाव हो गये नीरव

हो न सका अलका दिल हीरव।


डॉ0 अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'

लखनऊ उत्तर प्रदेश।