व्यंग्य : भूत की कथा

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

 एक पुराने खंडहर में, जिसे लोग भूत बंगला कहते हैं, एक भूत रहता था और उसे विश्वास था कि दुनिया में भूत होते ही नहीं, उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है। एक दिन अचानक उस भूत को प्रेतात्मा ज्ञान प्राप्त हुआ। अपने साथी भूतों को अपना ज्ञान दाँत दिखाते हुये उपदेश देने लगा।

“ भाइयों, सालों साल हवा में घूमते हुये मैंने जो ज्ञान हासिल किया है, वह आपको बताने जा रहा हूँ। मनुष्य और भूत अलग अलग नहीं होते। वे सभी हमारी तरह ही होते हैं और तो और मनुष्य भी बस हमारी तरह ही होते हैं। मरने के पहले ही अति चालाकी, जिसे मृत्यु ज्ञान कहते हैं, का होना ही अंतिम छोर है जीवन का, डेड एंड है। 

वेयर देर इस ए विल, तेरे इस ए डेविल( जहां चाह है, वहाँ भूत है)। जहां डेविल नहीं है तो वहाँ ईविल है। आत्माओं को मार डालें तो प्रेतात्मा, आत्मा को अलंकृत करें तो अंतरात्मा। जिसकी कोई आत्मा नहीं होती वह परमात्मा। दूसरों की आत्मा को खाते रहने वाला जीवात्मा। अगर आप अपनी खुद की आत्मा को खाते रहें तो महात्मा। अब यह जान लीजिये की मर खप कर मनुष्य ने क्या हासिल किया? 

यही कि जब चाहें तब भूतों की तरह बदल जाना, भूत बन जाना। बड़ों का कहना है कि ज्ञान से भोजन मिले न मिले पर भोजन की वजह से ज्ञान ज़रूर आता है। आज के जमाने में जब होस्ट (मेजबान) ही घोष्ट (भूत) बन रहे है, ऐसे में हमारी जीवन शैली किस तरह की हो...?” बता ही रहा था की वह भूत  बंगला ढह गया और सारे भूत किसी दूसरे को सावधान किए बिना, बताए बिना भाग गए, भागते भूत की लंगोटी भली को सार्थक करते हुये।

हमारे नायक भूत की जब तंद्रा से आँख खुली तो देखा सामने बिल्डर और उसके पीछे उसके बाड़ी बिल्डर थे। अशरीरी भूत को लात मारते हुये बाड़ी बिल्डर ने कहा- अब भूतों को भूत बंगलों में नहीं, शहरों में रहना चाहिये। लात खाकर भूत शहर में जा गिरा। वहाँ की भीड़, जन  समुदाय को देखकर भूत को डर लगा। हर आदमी किसी न किसी ओर दौड़ रहा है। क्यों और किसलिए किस ओर दौड़ रहा है, किसी को भी पता नहीं। पूछो तो गंदी सी गाली देकर बढ़ा जा रहा है।

भूत ने कोशिश की कि भयानक रूप से हंसकर वह लोगों को डराए, पर किसी के पास डरने के लिए समय ही नहीं है। आज के रेस वेल्यू के जमाने में फेस वेल्यू को व्यर्थ और अर्थहीन  पाकर भूत को पागलपन की हद तक हंसी आई। और वह खीसें निपोरकर, बड़े बड़े दाँत दिखाकर हंसने लगा। 

दांतों के अस्पताल के लोग आए और उस भूत को अपने डेंटल हॉस्पिटल ले जाकर उसके ऊबड़ खाबड़ दांतों को ठीक किया और सोलह क्लिप लगा डाले। जब भूत ने कहा कि उसके पास फीस और आपरेशन और बाकी के लिए पैसे नहीं है, तो सारे दाँत तोड़कर अस्पताल वालों ने उसे सड़क पर फेंक दिया।

भूत को गुस्सा आया और वह हवा में उड़कर अपने कई करतब दिखाने लगा। एक टी वी चेनल के लोगों ने  हवा में जाल फेंका और भूत को पकड़ लिया  अपने स्टुडियो ले आए। “सिटी बस कैसे चढ़ें” विषय पर चर्चा कार्यक्रम रखा। जब उन्हें बताया गया कि वह भूत है तो सभी प्रसन्न हुये और चर्चा का विषय बदल कर “शहरों की ओर भूतों का पलायन” कर दिया ।

 भूत ने कहा “पुराने घरों को, खंडहरों को, भूत बंगलों को बिल्डर गिरा रहे हैं, सड़क विभाग वाले पेड़ों को काटकर गिरा रहे हैं। ऐसे में हम कहाँ जाएँ, कहाँ रहें और कहाँ अपना ठिकाना बनाएँ? बताएं” –कहते हुये भूत रोने लगा। इसे देखकर सारे राजनीतिक दल यह कहते हुये कि भूत की सहायता करने का हक़ उनके ही पार्टी को है, लड़ने लगे। खूब मारामारी हुई, कुछ लोग अस्पताल में तो कुछ लोग भूतों के साथी बन गए मर कर भूत बनने के बाद।         

डॉ0 टी महादेव राव

विशाखपटनम (आंध्र प्रदेश)

9394290204