युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
जब-जब भरमाया है जीवन,
मन भोले से बांध लिया,
अपना-अपना छोड़ के हमने,
जग को अपना मान लिया।
जब-जब भरमाया ....
क्या तेरा था क्या मेरा था,
क्या लेकर तू आया था,
संग मिला जब भोले का तो,
क्या अपना क्या पराया था।
जब-जब भरमाया ....
मन में गांठ बांध ली तूने,
क्यूं अपनों से रूठा था ?
भोले से तू लगन लगाले,
बरसों से तू भूखा था।
जब-जब भरमाया ....
श्वांसें भी जो बहक रही थीं,
भोले का संग पाने को,
मैने जब भोले को देखा,
राह खुली तब आने को।
जब-जब भरमाया ...
आओ एक-एक साज बजाएं,
भोले को बहलाने को,
धरा झूम के गगन उठाए,
भोले को मुस्कानें दो।
जब-जब भरमाया ...
(140 वां मनका)
कार्तिकेय कुमार त्रिपाठी 'राम'
गांधीनगर, इन्दौर,(म.प्र.)