युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
देशव्रती समर्थ रह श्रपितम, भक्ति सुधा बन जाते।
पैतृक ग्राम त्याग सुख परिणय,ध्यान विरक्ति समाते।।
बारह वर्ष में तप सँग अचल, इन्द्रिय भाव तजें वे,
नाम जपें नदी जल तल अहुत,भीख लिये कर आते।
साधन लक्ष आप्त मन अभिजिति, अंतस राम विलोकें।
देश अवाम त्राण हिय रखकर, तीरथ मन्त्र जगाते।
धीर प्रवास काल रह पदचर, प्रेम स्वदेश प्रचारें,
राघव रूप नील रँग नभ सम, भाव समर्थ बढ़ाते।
उत्तर से अधोदिश गमन कर, हेतु जुड़ाव बनें वे,
शिष्य विभाव छत्रपति चित धर, त्याग अहं सिखलाते।
बारह सौ प्रणाम रवि अभिमुख,तेज मरीचि जगा दें,
एकल भाव निर्गुण सगुण लख,काव्य अभंग सजाते।
संहित दासबोध गिरि गहवर, ग्रन्थ समूह रचें वे,
सत्य स्वतंत्र निर्भय चित सृजित, प्रेरक श्लोक लुभाते।
मीरा भारती,
पटना,बिहार।