संस्कृति पर्व (छंंद, भुजंगप्रयात)

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

   

अविद्या सुदूरी,  व्रती भाव   न्यारे,

पुजारी प्रजा है, बिचौली न प्यारे ,

   

   मरीची असीसें,छठी माँ विराजें,

   नदी हो सफाई,तलैया सुधारें। 

  

  व्यवस्था विनीता, शुभाधार श्रद्धा,

   कटिस्नान एकाग्र  होते सकारे। 

 

  सदा त्याग को ईश-.निष्ठा सु-जानी,

    प्रसादी सजी सूप डाला सँवारे। 


 कभी साँझ बेला व्रती गीत गाते,

   सुहाना सवेरा व्रती मान धारे। 


 सदा  पूज ऊषा सभी रोग भागें,

  वही सूर्य  रानी उ-न्हें ही श्रँगारे।


 अहंकार त्यागें, रहें मोक्ष प्रेमी,

 महापर्व देशी न संस्कार हारे।


  मीरा भारती।