पायल

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


मैं हीं हूँ पायल,मैं ही नुपुर झंकार हूँ,

बिछुये की खनक,मैं ही गांडीव टंकार हूँ।

दीपक पर हूँ समर्पित मैं शलभ,

प्रीतिमय भी मैं,मैं ही निठुर प्राण हूँ।


साथ रहकर भी हूँ विरहनी,

नीर भरी फिर भी तृषित चाँदनी।

हलाहल पीकर जो सुधा बरसाये,

मैं वो मधुप और मधु पात्र हूँ।


पैरों में बँधी प्रेम की जंजीर हूँ,

कल्लोलिनी मैं,मैं ही अश्रुनीर हूँ।

उर में छुपाकर शूल, मैं विकल बुलबुल,

मैं ही प्रलय,मैं जगत आधार हूँ।


हूँ मैं पायल,नहीं मैं रतिलक्ष ,

तम को भेदकर राहें बनाऊँ वलक्ष।

विद्युत कंकण की ओज,त्याग की चरम आसक्ति,

मैं ही हूँ शाप,मैं ही वरदहार हूँ।


डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)