माँ की चिट्ठी

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क


यादों के तहख़ाने से एक चिट्ठी मिली,

माँ के आशीष से भरी  पोटली मिली।


मोबाइल युग में भी मेरी माँ लिखती थी,

टाइपिंग से परे लिखावट से स्नेह बुनती थी।


वो चिट्ठी तब मैंने बस पढ़ा था पर आज समझी हूँ,

शब्दों में छुपी भावनाओं को आज परखी हूँ।


बेटे के चूड़ाकर्ण में न आने की मजबूरी बताई थी,

तुम अस्वस्थ थी पर मैंने नाराज़गी जताई थी।


आज सीने से लगाकर तुम्हारी चिट्ठी पढ़ती हूँ,

नेह भरी पाती में तुम्हें ही ढूंढती रहती हूँ।


               डॉ0  रीमा सिन्हा

            लखनऊ-उत्तर प्रदेश