युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क
पहनते थे सफ़ेद धोती
हात में जिनकी लाठी
पैरो में रहती थीं पुरानी
चप्पल चलते थे जोरो से
निकल पड़ते थे कही भी
बापू कभी भी कही पैदल
दिन देखा न कभी रात
लोगो को लेकर चले साथ
कोई आया न आया
पिछे मुड़कर न देखा
सूत कैसे निकलता
चरखा चलाना सिखाया
बापू के तिन बंदर हे याद
दि हमें बहोत अच्छी सिख
बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो
आँखे बंद कर लो बुरा न देखो
सत्याग्रह नमक का किया
तब नमक हमें नसीब हुआ
धुप देखी ना बापू नें बारिश
कि थीं अंग्रेजो नें साजिश
कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र