मुँह वाला मंत्री!

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

कल कमाल हो गया। जनता ने पहली बार एक ऐसे मंत्री को देखा जो मुँह से बोलता था। चुनाव जीतने के बाद हाथ, पैर, आँख, नाक से बोलने वाले मंत्री अक्सर मुँह का इस्तेमाल सिर्फ रैलियों में करते हैं। किंतु इस मंत्री ने मुँह का इस्तेमाल कर अपने दल के साथ-साथ जनता को भी आश्चर्यचकित कर दिया। मीडिया ने भू-बकासुर, धनखाऊ और जनता की समस्याओं के प्रति चुप्पी साधने वाले इस कुंभकर्णी मंत्री के बारे में लाख कार्यक्रम चलाए, लेकिन यह मंत्री अंगद पैर की भांति सत्ता पर अड़ा रहा। मीडिया और जनता लाख चिल्लाते रहे लेकिन वह भीष्म प्रतिज्ञा की तरह चुप रहकर शांतचित्त बना रहा।

पहले तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि भोजन के सिवाय सब कुछ  डकारने वाले इस मंत्री का मुँह कैसे खुल गया!! दलाध्यक्ष ने कहा कि असंख्य गूँगे-बहरे मंत्रियों को संभाला जा सकता है, लेकिन एक अदद मुँह वाले मंत्रा को संभालना सबसे मुश्किल काम है। अक्सर बोलने वाला मंत्री गूँगे-बहरों के बीच कैंसर बनकर उन्हें भी यह रोग लगा देता है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, सिवाय दूर रहने के। सत्ता अक्सर लूटने में इतनी लिप्त रहती है कि उसे जनकल्याण भी एक बीमारी सी लगती है।

अचानक से मुँह खोलने वाले मंत्री जी ने पिछले दो दशक से लूटपाट का ऐसा कीर्तिमान बनाया कि सभी नवजात मंत्रियों के लिए वह आराध्य लूटपुरुष बन गया। पिछले दिनों वह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने के बहाने कठपुतली का तमाशा देख बैठा। उसने देखा कि बन्दर और मदारी के तमाशे में बन्दर मदारी को नचा रहा था। उसे अपनी याद हो आई। वह जनता को नचाने में सिद्धहस्त था। 

नेता जी के पास हमेशा नए नए आइडिया तैयार रहते थे। नई सरकार बनने पर उसने पानी-पूरी की तर्ज पर घोटाला-पूरी का स्टाल लगवाया था । कांट्रेक्टरों को उनके कार्यक्रमों का शिद्दत से इंतजार रहता था। उसने वादा कर रखा था कि अबकी जमीन पर भवन बनाए बिना जेबों में रुपयों का भवन बनायेगा। वादे के मुताबिक उसने कांट्रेक्टरों की जेबों में इतने रुपए भवन बना दिए कि दूसरे मंत्रियों को उनका पत्ता काटने के लिए कमर कसनी पड़ी। मंत्रियों के दल ने लोहे को लोहा और रुपए को रुपया काटने वाले फार्मुले की तर्ज पर मंत्री जी को पद से हटवा दिया।

मंत्रियों के वाट्सएप ग्रुप में खबर आई कि आज शाम को सब लोग मीटिंग हॉल में मंत्री को मुँह खोलते हुए लाइव देख  सकते हैं। मंत्रीगण चौंक गए । मैसेज के जवाब में कई जिज्ञासाएं आईं । मंत्रीगण पूछ रहे थे “मुँह खोलना क्या होता है !?’ 

'खोलने पर प्रभाव कैसा होता है ?' यह भी जानना चाहते थे कि इससे बचने के उपाय क्या हैं ? पिछली बार एक मंत्री डकार लेने के लिए मुँह खोला था कि मीडिया ने उसे राई का पहाड़ बनाकर सरकार गिरा दी थी। इसलिए इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए। पहले से ही सबको बता देना चाहिए कि वे कितना बड़ा मुँह खोलेंगे, कैसे खोलेंगे और क्यों खोलेंगे? मंत्रियों ने पूछा मुँह खोलने पर जीभ दिखाई देगी कि नहीं। मंत्रियों का एक बड़ा समूह जीभ वाले मंत्री के साथ सेल्फी लेने के लिए मरा जा रहा था। बेहतर हो कि मुँह खोलने वाले मंत्री की जीभ को जूम किया जाए, जिससे कि हजार चूहे खाने के बाद हज को जाने वाली बिल्ली की जीभ का रंग, आकार कैसा होता है? देखने का सौभाग्य प्राप्त कर सके।

तय समय के अनुसार मंत्री जी को बुलाया गया। उन्हें मुँह खोलने के लिए कहा गया। बाकी के मंत्री चौंक गए। ‘ अरे !! ये क्या इनकी जीभ ही नहीं है!!’ जीभ कम से कम एक मीटर लंबी होगी, ऐसा सोचकर मंत्रीगण आए थे। किंतु यह क्या इनकी जीभ ही नहीं है!  मानो ऐसा लगा ये तो आगे चलकर बड़ा खेला करने की योजना बना रहा है! दलाध्यक्ष ने कहा कि सत्ता में जीभ न रहना स्वनियंत्रित जीभधारियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जिनकी जीभ होती हैं उन्हें काफी सोचना समझना पड़ता है जबकि बिना जीभ वालों के लिए लूटना एक मात्र धर्म होता है।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, प्रसिद्ध नवयुवा व्यंग्यकार