अमेरिकी भारत संबंधों में और प्रगढ़ता की आवश्यकता

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

वाशिंगटन की एजेंसी के अनुसार अमेरिका को भारत की चीन के बढ़ते प्रभाव और विस्तारवाद के खिलाफ ज्यादा आवश्यकता होगीस भारत के तेजी से विज्ञान टेक्नोलॉजी और प्रतिरक्षा में बढ़ते कदम को देखते हुए अमेरिका की उप रक्षा मंत्री ने अपने बयान में कहा है की प्रशांत महासागर में ड्रैगन की बढ़ती हसरतों को रोकने के लिए भारत से ज्यादा से ज्यादा प्रतिरक्षा समझौते और सामरिक संयुक्त सैन्य अभ्यास की जरूरत होगी। उन्होंने कहा है कि अमेरिका अब चीन की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए हजारों स्वायत्त हथियार प्रणालियों का उपयोग करने की योजना बना रही है।

इसके लिए अमेरिका एक विशेष रिप्लिकेटर सामरिक प्रणाली का उपयोग युद्ध के मैदान में करने जा रही है इसके लिए रोबोट और और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा स्वचालित शास्त्रों से लैस ड्रोन पद्धति से युद्ध लड़ने पर विचार कर रही है।अब युद्ध का भविष्य बदल चुका है पहले रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विचारों में था लेकिन अब उसे हकीकत में बदलने समय आ गया है। युद्ध के उद्देश्य के लिए रोबोटिक प्रणाली का ज्यादा से ज्यादा सर्वोत्तम उपयोग किया जाना होगा गौरतलब है कि यूक्रेन में रूस के साथ युद्ध में दिखा दिया है कि रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का वास्तविक दुनिया में कैसे उपयोग किया जाता है।

 रूस और यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन ने रूस के खिलाफ बख्तरबंद वाहनों और तोपखाने का पता लगाने के उन पर रोबोटिक तथा ड्रोन से व्यापक हमले का उपयोग किया है यूक्रेनी नौसेना ने अपने हमलावर ड्रोन से रूस के काला सागर फ्लीट को लगभग पंगु बनाकर उन्हें युद्ध पोत बंदरगाह से आगे नहीं बढ़ने दिया है। इसके अलावा यूक्रेन ने मास्को में ड्रोन अटैक से रूस के मुख्यालय में राष्ट्रपति पुतिन और उसके कमांडरों को मुसीबत में डाल दिया था। 

उपसेना प्रमुख ने बताया कि अमेरिका की जिम्मेदारी रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन को न सुरक्षित रख पाने और चीन पर ताइवान की कुदृष्टि से बचाने के लिए जिम्मेदारी बहुत अहम हो जाती है। ऐसे में अमेरिका तथा नाटो देश अपने दुश्मनों के खिलाफ स्वायत्त रक्षा प्रणाली जिसका सीधा-सीधा मतलब ऐसे रोबोट के उपयोग से है जिसे मानव हस्तक्षेप के बिना जटिल सेवा के अभियानों को अंजाम दिया जा सकता है। इसके अलावा एंट्रीटेबल रक्षा प्रणाली जिसका अर्थ रोबोट को इतना सस्ता बनाकर उसे उच्च प्राथमिकता वाले सेना के मिशन में रोबोट को जोखिम में डालकर इसके नष्ट होने का खतरा मोल लिया जा सकता है।

 यह रोबोट बहुत ही किफायती होंगे इसलिए इन्हें बड़ी संख्या में बनाया जा सकता है एवं अन्य देश इसे खरीद भी सकते हैं जिसके फल स्वरुप युद्ध में नुकसान की भरपाई की जा सकती है। अब यह तो अब तय हो चुका है कि युद्ध अब अत्यधिक आधुनिक रोबोट टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपकरणों से लड़े जाएंगे इसके अलावा यदि विश्व युद्ध होता है तो जैविक हथियारों के साथ परमाणु बम का इस्तेमाल भी किया जा सकता है पर यह मानवीय सभ्यता के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक एवं विनाशकारी होगा। इसका सबक अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी में किए गए परमाणु विस्फोटों से ले सकते हैं। 

भारत सदैव युद्ध के खिलाफ रहा है और परमाणु बम के परीक्षण के समय ही यह नीति स्पष्ट कर दी थी की भारत अपनी रक्षा के लिए परमाणु बम तथा सेना का उपयोग युद्ध के समय करेगा। पर भारत की परमाणु तथा सामरिक शक्ति के अलावा स्पेस टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव के कारण यूरोपीय तथा अमेरिका के सहयोगी देश अब भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए आकर्षित होने लगे हैं। 

भारत की चंद्रयान तीन की सफलता के बाद भारत का कद अब स्पेस रिसर्च में भी काफी ऊंचा हो गया है चंद्रमा के साउथ पोल में पहुंचने वाला पहला देश बनने के बाद भारत की हैसियत गिनती के देशों में होने लगी है। कुल मिलाकर वैश्विक परिदृश्य युद्ध की पृष्ठभूमि भूमि को तैयार करने में लगा हुआ है।

 रूस का चीन की तरफ बढ़ता हुआ दोस्ताना रुख, अमेरिका तथा नाटो देशों को चिंता में डाल रहा है और यही वजह है कि एशिया में अमेरिका,ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया,फ्रांस,कनाडा ,इजरायल अपने शांतिप्रिय मित्र भारत की तरफ तेजी से मित्रता बढ़ाने के लिए अग्रसर हो रहे हैं । यह भारत के लिए शुभ संकेत भी है पर भारत के लिए यह अत्यंत सावधानी का विषय होगा कि वह अपने परंपरागत मित्र रूस से मित्रता में कहीं भी कमी ना आने दे यही भारत की कूटनीतिक सफलता होगी।