कही नही पाती हूँ।

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क 

किसी ने पूछा,

ये किसका घर है 

 मैंने कहा पापा का ,

  और

माँ कहती हैं, मुझे पराये घर जाना हैं ।

 इसीलिए

इस आँगन में मैं बस खेलती कूदती रहती हूँ।

........

फिर किसी ने पूछा ,

ये किसका घर है 

मैंने कहा ससुरजी का,

और

सास कहती हैं कि मैं पराये घर से आई हूँ ,

इसीलिए 

इस आँगन में इच्छाओं को दबाती  हूँ ।

.......

फिर किसी ने पूछा,

ये किसका घर है ।

मैंने कहा पति का,

और

पति गुस्से में कहते हैं, 

ये मेरा घर है, चली जाओं  जहां जाना हैं ,

इसीलिए

इस आँगन में मैं काम  करती हूँ।

........

फिर किसी ने पूछा,

ये किसका घर है ।

मैंने कहा मेरे बेटे का,

और 

बहू  कहती हैं, हमारे हिसाब से रहो ,

नही तो वृद्धाश्रम छोड़ देंगे,

इसीलिए,

इस आँगन में मैं नीर बहाती  हूँ।

चार घर देखती हूँ, 

जीवन के चार काल  में ।

पापा ,ससुर,पति और बेटा,

पर अपना घर ......

कही नही पाती हूँ। ।

गरिमा राकेश गौतम 'गर्विता 

कोटा राजस्थान