मैं हिंदी हूँ

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

मैं बहुत खुश हूँ

अपने अक्षर/शब्द/वाक्य से

क्योंकि इनकी संरचना ही

मुझे पूर्णता प्रदान करती हैं,

इसीलिए तो मैनें रखा है इन्हें

अपने बहते हुए स्वच्छ सलिल में,

जैसे मैं कालिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ... मैं हिंदी हूँ...।

त्रयोदधि के निर्मल नीर

रह-रह पग पखारते

हरेक शीश सदैव झूकते

कच्छ-कलकाता-से बाँहें उठते,

जिनके कश्मीर माथे की

अरुणाभ सरीख इक बिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ...मैं हिंदी हूँ...।

पर मेरा दुर्भाग्य !

कि मैं भयभीत हूँ,

परायों से नहीं/ अपनों से हूँ

निरक्षरों से नहीं/साक्षरों से हूँ,

जिनने मेरे अंग-प्रत्यंग-

उचित मात्रा/अक्षर संयोजन

वाक्य-निर्माण/ चिह्न-उपयुक्तता

के प्रति असावधानीपूर्वक प्रयोग,

अन्य भाषाओं के समक्ष

मिथ्याडम्बर के चलते मिटता

मेरा महत्व/मेरा अस्तित्व,

तभी तो बटती हूँ मैं टुकड़ों में,

जैसे मैं चिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ... हाँ भाई मैं हिंदी हूँ...।

टीकेश्वर सिन्हा "गब्दीवाला"

घोटिया-बालोद (छ.ग. )