ओम् स्वाहा...

युग जागरण न्यूज़ नेटवर्क

चुनावी वादे भगवीता के सार की तरह होते हैं। जो कल किसी का था, आज वह किसी का है और परसों किसी और का होगा। इस सार से सत्ता और विपक्ष दोनों डरते हैं। साथ ही लाभ भी उठाते हैं। पार्टियाँ प्रायः चुनाव के समय डरी-डरी सी रहती हैं। बाकी दिनों में जनता को डराती रहती हैं। पार्टियों को बड़े खतरे की आशंका हुई। कुछ शुभचिंतकों ने सोचा कि इससे पहले पानी सिर के पार हो जाए आलाकमान को सचेत करने में अपनी भलाई है। भली-भांति जानते हैं कि सरकारी व्यवस्था में सरकार हमेशा चाकू और शुभचिंतक तरकारी की तरह होते हैं। हर हाल में कटना तो तरकारी को ही है।

बात जब आलाकमान तक पहुंची तो मुखिया पहले थोड़ा परेशान हुए। फिर सोचा मुखिया का काम तो परेशान करना होता है न कि परेशान होना। वैसे भी बैसाखी और परेशानी से चलने वाला कोई भी मुखिया मुंह के बल धड़ाम से गिरता है। अफरा-तफरी में आपातकालीन बैठक बुलाई गई। आपातकालीन बैठक में हमेशा आपातकाल के नाम पर आफत काल का माहौल तैयार होता है। यही वह मौका होता है जब आलाकमान के सभी लोग एक दूसरे से मिल बैठकर तोड़ने जोड़ने और अपनी भड़ास निकालने का पूरा लाभ उठाते हैं। इसीलिए आलाकमान बैठकों से अधिक उठापटक में विश्वास रखता है।

जैसे तैसे आलाकमान की बैठक आरंभ हुई। मुखिया ने अपनी गिद्दी नजर सब पर गड़ाई। उन्हें डराने लगा। कहा- हमारे पीठ पीछे पार्टी की थाली में छेद करने की साजिश रची जा रही है। हमारा विरोधी कुछ बड़ा करने की फिराक में है। आज के समय में विरोधी का जीवित रहना हमारी नपुंसकता का परिचायक है। मुखिया की बात सुन सभी गहरे चिंतन में डूब गए। या यूँ कहिए सोचने के नाम पर कुछ सो गए तो कुछ खो गए। वैसे भी भीड़ में कभी सांप नहीं मरता। मुखिया जान गए थे कि जिन्होंने जीवन भर लूटपाट, डकैती और डकारने के लिए हाथ पैर और पेट का इस्तेमाल किया हो उनसे बुद्धि वाला कार्य करवाना सबसे बड़ी बेवकूफी है।

आखिरकार मुखिया ने हल ढूंढ निकाला। निर्णय किया कि कस्बे के सभी भेड़ों को ठंडी से बचने के लिए ऊनी स्वेटर बांटे जाएंगे। यह सुनकर विरोधी सुन्न और भेड़ प्रसन्न हो गए। मुखिया की उदारता पर रटे रटाए भाषण दिए जाने लगे। जलसा निकाला गया। गली-गली मूर्तियां स्थापित की गईं। मुखिया की इस महान घोषणा के लिए भेड़ों का झुंड उनसे मिलने उनके घर पहुंचा। सौभाग्य से मुखिया के दर्शन भी हो गए।

दर्शनावधि के बीच एक समझदार भेड़ ने मुखिया से प्रश्न किया - महाप्रभु! हमारे प्रति आपकी उदारता के लिए हम सब आपके ऋणी हैं। क्या आप बता सकते हैं कि इतने सारे ऊनी स्वेटर का प्रबंध कहाँ से करेंगे? मुखिया तो पहले मुस्कुराए और धीरे से कहा – अरे बेवकूफों! इन ऊनी स्वेटरों के लिए ऊन तुम्हारे बदन से ही उधेड़ी जाएगी। राजनीति करने वाली पार्टियाँ कभी अपनी जेब से कुछ नहीं करतीं। सामने वाले की चीज सामने वाले को देकर इसकी टोपी उसके सर का खेल खेलती है।      

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657